नई दिल्ली: “आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना या सांसारिक गतिविधियों को त्यागना नहीं है. आध्यात्मिकता का मतलब अपने भीतर की शक्ति को पहचानना और अपने आचरण व विचारों में पवित्रता लाना है. विचारों और कार्यों में पवित्रता जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और शांति लाने का मार्ग है. यह एक स्वस्थ और स्वच्छ समाज के निर्माण के लिए भी आवश्यक है.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने यह बात राजस्थान के माउंट आबू में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘स्वच्छ और स्वस्थ समाज के लिए आध्यात्मिकता‘ पर एक वैश्विक शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि शारीरिकमानसिक और आध्यात्मिक स्वच्छता एक स्वस्थ जीवन की कुंजी है. हमें केवल बाहरी स्वच्छता पर ध्यान नहीं देना चाहिएबल्कि मानसिक और आध्यात्मिक रूप से भी स्वच्छ होना चाहिए. समग्र स्वास्थ्य स्वच्छता की मानसिकता पर आधारित है. भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य सही सोच पर निर्भर करता है क्योंकि विचार ही शब्दों और व्यवहार का रूप लेते हैं. दूसरों के प्रति कोई राय बनाने से पहलेहमें अपने अन्तर्मन में झांकना चाहिए. जब हम किसी दूसरे की परिस्थिति में अपने आप को रखकर देखेंगेतब सही राय बना पाएंगे.

राष्ट्रपति ने कहा कि आध्यात्मिकता केवल व्यक्तिगत विकास का साधन ही नहीं हैबल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का भी एक तरीका है. जब हम अपनी आंतरिक शुद्धता को पहचान पाएंगेतभी हम एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना में योगदान दे पाएंगे. आध्यात्मिकतासमाज और धरती से जुड़े अनेक मुद्दों जैसे कि सतत विकासपर्यावरण संरक्षण एवं सामाजिक न्याय को भी शक्ति प्रदान करती है. मुर्मु ने कहा कि भौतिकता हमें क्षण भर की शारीरिक और मानसिक संतुष्टि देती हैजिसे हम असली खुशी समझकर उसके मोह में पड़ जाते हैं. यह मोह हमारी असंतुष्टि और दुख का कारण बन जाता है. दूसरी ओरआध्यात्मिकता हमें खुद को जाननेअपने अन्तर्मन को पहचानने की सुविधा देती है. राष्ट्रपति ने कहा कि आज की दुनिया मेंशांति व एकता की महत्ता और अधिक बढ़ गई है. जब हम शांत होते हैंतभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम महसूस कर सकते हैं. योग और ब्रह्माकुमारी जैसे संस्थानों की योग और आध्यात्म की शिक्षा हमें आंतरिक शांति का अनुभव कराती हैं. यह शांति न केवल हमारे अंदर बल्कि पूरे समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है.