नई दिल्ली: “आज के समय में ईमान बहुत खतरे में है. हमें यह भी तय करना है कि ईमान को बचाना है कि नहीं.” यह बात चिंतक, विचारक, कूटनीतिज्ञ और पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने राजीव भार्गव की किताब ‘राष्ट्र और नैतिकता: नए भारत से उठते 100 सवाल‘ के लोकार्पण कार्यक्रम में कही. उन्होंने कहा कि सवाल आज का सबसे जरूरी शब्द है. जरूरी नहीं है कि हर सवाल का जवाब मिले. पर सवाल उठाना बहुत जरूरी है और इसका दारोमदार किताबों पर है. हमें यह भी पहचानने की जरूरत है कि किन-किन चीजों में आज सांस नहीं है. यह किताब हिन्दुस्तान के ईमान के बारे में है, उसकी आत्मा के बारे में है. यह किताब एक ऐसे व्यक्ति की कलम से निकली है जो एक बुद्धिजीवी है विचारक है और नागरिकता पर विश्वास रखने वाला हिन्दुस्तानी है. राजधानी के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इस कार्यक्रम का आयोजन राजकमल प्रकाशन समूह ने किया था. वक्ताओं ने कहा कि हम आजकल इतनी जल्दी में है कि तुरन्त सबकुछ हासिल कर लेना चाहते हैं. इस जल्दबाजी में हम अपने मूल्यों और नैतिकता को भुला रहे हैं. हमारी सभ्यता की हजारों वर्षों की यात्रा से हमने जिन मूल्यों को हासिल किया है, वे आज खंडित हो रहे हैं. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मूल्यों के बिना हम जी नहीं सकते. आज हम अपने में ही इतने सिमट रहे हैं कि विपरीत विचारों वाले व्यक्ति से बात तक नहीं करना चाहते. इस तरह के एक बंटे हुए समाज में नीति और नैतिकता के परिप्रेक्ष्य में, हमारा रोजमर्रा का व्यवहार और विचार क्या हो, इस पर राजीव भार्गव ने अपनी किताब में बहुत शिद्दत से बात की है. इस किताब में हमारे समय के बहुत जरूरी सवालों को उठाया गया है. यह किताब हिन्दुस्तान के ईमान के बारे में है, उसकी आत्मा के बारे में है.
इतिहासकार एस इरफान हबीब ने अपने संबोधन में कहा कि आज हम बहुत जल्दी सब कुछ हासिल कर लेना चाहते हैं. इस जल्दबाजी में हम मूल्यों की परवाह नहीं करते. हम नैतिकता को भुला रहे हैं. राजीव भार्गव ने अपनी किताब में हमारे समय के बहुत जरूरी सवालों को उठाया है और बड़ी खूबसूरती से उनके जवाब भी दिए हैं. यह किताब हमें एक उम्मीद दिखाकर खत्म होती है कि यह समय भी बदलेगा. यह भरोसा करना बहुत जरूरी है कि आज हम जहां हैं, उससे एक दिन जरूर बाहर निकलेंगे. विचारक और सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा ने कहा कि यह किताब ऐसे समय में आई है जब हर चीज पर दोबारा विचार की जरूरत पड़ रही है. आज सबसे अहम सवाल है कि हम अपने लोकतंत्र और पारस्परिकता की समझ को कैसे अमल में लाएं? यह किताब एक दिशा देती है कि हमें किस नजरिए से इस समय को देखना चाहिए. उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि संविधान वह नहीं है जो वकीलों और जजों के बीच कोर्ट की बहसों तक सीमित होता है. संविधान एक नागरिक का दूसरे नागरिक के साथ समझौता है. संविधान वह है जिसकी बुनियाद पर एक नागरिक दूसरे नागरिक को यह भरोसा दिलाए कि जो हमारा हक है, वह तुम्हारा भी हक है. यही संवैधानिक नैतिकता है जो हमारे संविधान को एक सूत्र में बांधती है और उसे ही राजीव भार्गव ने अपनी किताब में लिखा है. किताब के लेखक राजीव भार्गव ने कहा कि हमारी हजारों वर्षों की सभ्यता ने जो मूल्य अर्जित किए, वो आज खंडित हो रहे हैं. वो मूल्य बड़े संकट में है. इसको बचाने का निर्णय एक सामूहिक समझ से करना है. यदि हम मूल्यों से खुद को अलग करते हैं तो फिर हम मनुष्य ही नहीं रह पाते हैं.