वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के रामचंद्र शुक्ल सभागार में श्री प्रकाश शुक्ल के कविता संग्रह ‘रेत में आकृतियां’ का लोकार्पण एवं परिचर्चा आयोजित हुई. स्वागत वक्तव्य वाणी प्रकाशन की अदिति माहेश्वरी ने दिया. उन्होंने कहा कि गंगा किनारे की बनी मूर्तियों को एक कवि ने अमर बना दिया. डा विंध्याचल यादव ने कहा कि इस कविता संग्रह के माध्यम से बनारस के भौगोलिक चित्र को उकेरने की कवि ने कोशिश की है. नब्बे के आसपास के समय में जब तेजी से पूंजीवादी सत्ता ने अपनी जड़ें स्थापित की तब पुरानी स्मृतियों को स्थापित करने का काम इस कविता संग्रह ने किया है. यह संग्रह विस्मृति के खिलाफ एक सशक्त आवाज है. बालू और नदी पर एक कवि का सोचना अपने में एक बड़ी कल्पनाशीलता को दर्शाता है. प्रो कमलेश वर्मा ने कहा कि कवि ने लपकने एवं झपकने, धूल और धुएं के बीच के शहर के रूप में बनारस का जिक्र किया है. बनारस से टकराने और उससे थककर नदी के उस पार जाना ‘रेत में आकृतियां’ कविता-संग्रह का दार्शनिक आयाम रखती है. इसके केंद्र में रेत है, नदी है, नदी में नाव है और मदन लाल जैसे कलाकार की कला है, नमी है, कुछ आकृतियां प्राकृतिक हैं तथा कुछ बनाई गई हैं.

प्रोफेसर कृष्णमोहन ने कहा कि यह रेत पर आकृतियां न होकर रेत में बनी हुई आकृतियां है, रेत में निहित आकृतियां है. इस संग्रह के प्रथम कविता की पंक्ति है, ‘रेत में उभरी आकृतियों के बीच, हर कोई ढूंढ रहा था अपनी आकृति, और हर कोई भागता था अपनी ही आकृति से, यहां सब था, और सबके बावजूद बहुत कुछ ऐसा था, जो वहां नहीं था, जिसे कलाकारों की आंखों में देखा जा सकता था.’ कविता संग्रह के प्रेरणा स्रोत मूर्तिकार मदनलाल गुप्ता ने ‘रेत में आकृतियों का जन्म कैसे हुआ?’ का व्यापक फलक प्रस्तुत किया. श्रीप्रकाश शुक्ल ने इस संग्रह की रचना-प्रक्रिया के सारतत्त्व को रेखांकित करते हुए विंध्याचल यादव, कमलेश वर्मा, अरुण कमल, राजेश जोशी के भूमिका को संदर्भित किया तथा इसके अनन्तर अपने मित्र कवि बोधिसत्व को याद किया. अध्यक्षीय उद्बोधन में हिंदी विभाग के मुखिया वशिष्ठ अनूप ने संग्रह की कविताओं के प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया. उन्होंने रेत और नदी के रचनाकर्म के संदर्भ में कवि निराला, महादेवी वर्मा, अजेय, जयशंकर प्रसाद के साहित्य को स्मारित किया और श्रीप्रकाश शुक्ल के योगदान की सराहना करते हुए संग्रह की कुछ कविताओं का काव्य पाठ किया. संचालन डा महेंद्र कुशवाहा एवं धन्यवाद ज्ञापन डा नीलम कुमारी ने किया. कार्यक्रम में डा सुचिता वर्मा, डा प्रियंका सोनकर, डा शबनम खातून, डा सुनीता, डा नीरज खरे, प्रो बलिराज पाण्डेय, डा हरीश त्रिपाठी आदि विद्वानों के साथ बड़ी संख्या में छात्र उपस्थित थे.