इंदौर: “लोकमाता अहिल्याबाई 18वीं सदी के समय में भी शिक्षा के महत्त्व को समझती थीं. उनके पिता ने भी उन्हें उस दौर में शिक्षित किया जब लड़कियों को पढ़ाना आम बात नहीं था और समाज के अनेक लोग इसका विरोध भी करते थे. उनका जीवन महिला सशक्तीकरण का उत्तम उदाहरण है.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने यह बात देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि लोकमाता ने अपने जीवन और शासन-काल में महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए अनेक नवीन और सफल प्रयास किए. उन्होंने जनजातीय समाज की आजीविका को सुनिश्चित करने के लिए भी निर्णय लिए और उनके विकास के लिए अनेक कार्य किए. उन्होंने कहा कि यह सबको ज्ञात है कि देवी अहिल्याबाई ने राज्य के कुशल प्रशासन, न्याय-परायणता एवं कल्याणकारी कार्यों में कई मानक स्थापित किए. उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि महिलाएं राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक, सभी क्षेत्रों में सक्रिय होकर क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती हैं. उन्होंने अपने आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प से वे रास्ते बनाए जिन पर आज हम सुगमता से चल रहे हैं. उनकी ख्याति देश ही नहीं विदेश तक फैली थी. राष्ट्रपति ने शिक्षण संस्थानों और शिक्षकों से आह्वान किया कि वे बेटियों को उच्च शिक्षा हासिल करने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करें. अगर आपके सहयोग और मार्गदर्शन से हमारी बेटियां बड़े सपने देखेंगी और उन्हें साकार करेंगी, तभी सही मायनों में आप देश के विकास में भागीदार बन पाएंगे.
छात्रों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि आप यहां से बाहर की दुनिया में कदम रखेंगे तो अपनी उपाधि, कौशल और ज्ञान के साथ-साथ नैतिक मूल्य, मित्रता और गुरु-शिष्य के संबंध रुपी अमूर्त संपदाएं भी यहां से लेकर जायेंगे. आप में से प्रत्येक की अलग-अलग क्षमताएं होंगी. भविष्य में आप किस क्षेत्र में या किस पद पर कार्य करेंगे, इसका निर्णय आपकी क्षमता और आपकी रूचि पर आधारित होना चाहिए. अगर इस आधार पर आप अपना रास्ता चुनेंगे तो आपको सफलता ज़रूर मिलेगी. राष्ट्रपति ने कहा कि मैं यह भी कहना चाहूंगी कि शिक्षा ग्रहण करने की प्रक्रिया कभी ख़त्म नहीं होनी चाहिए. इसमें कोई संदेह नहीं कि आप सब सक्षम हैं- एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए. मैं आपसे आग्रह करती हूं कि आप अपने ज्ञान और नवीनतम तकनीक का प्रयोग करके, समावेशी विकास को बढ़ावा दें और सतत विकास के बारे में भी सचेत रहें. इस बात को सदैव याद रखें कि सबके विकास में ही आपका अपना विकास निहित है. केवल अपनी आजीविका और अपने परिवार का विकास आप का लक्ष्य नहीं हो सकता. राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय के ध्येय वाक्य ‘धियो यो न: प्रचोदयात्‘ की चर्चा की और कहा कि यह पवित्र गायत्री मंत्र का हिस्सा है. गायत्री मंत्र एक प्रार्थना है. वैदिक देवता सविता, जिन्हें सूर्य का रूप भी माना जाता है, उनसे प्रार्थना की गई है कि हमेशा हमारी बुद्धि को शुद्ध करते रहें. शुद्ध विचार और शुद्ध आचरण ही अच्छे जीवन की आधारशिला हैं. यह ध्येय वाक्य अच्छा है और इसी के आधार पर आप जीवन में आगे बढ़ते रहिए.