कोलकाता: राष्ट्रीय जनजातीय शोध संस्थान और लुप्तप्राय भाषा केंद्र विश्वभारती विश्वविद्यालय द्वारा शांति निकेतन के भाषा भवन में ‘जनजातीय भाषाएं और भारतीय बहुभाषावाद का संरक्षण: नीति और व्यवहार’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई. संगोष्ठी का आयोजन एक संयुक्त अकादमिक सभा ने किया था, जिसमें देश भर के भाषाविदों, डोमेन विशेषज्ञों, क्षेत्रीय विशेषज्ञों, विद्वानों और आदिवासी समुदाय के प्रतिनिधियों सहित 40 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए गए. कार्यक्रम का उद्घाटन विश्वभारती के कार्यवाहक कुलपति प्रो बिनोय कुमार सरेन ने किया. उन्होंने कहा कि जब एक आदिवासी भाषा मर जाती है, तो अक्सर पर्यावरण और टिकाऊ जीवन से जुड़े बहुमूल्य मौखिक इतिहास, रीति-रिवाज और स्वदेशी ज्ञान खो जाते हैं. भाषा संरक्षण से आदिवासी समुदाय सशक्त बनते हैं और इससे देश में बहुभाषावाद को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करते हुए पीढ़ीगत पहचान, गौरव और निरंतरता को प्रोत्साहन मिलता है. राष्ट्रीय जनजातीय शोध संस्थान की विशेष निदेशक प्रो नुपुर तिवारी ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से हमारा उद्देश्य जनजातीय भाषाओं के संरक्षण, सुरक्षा और संवर्धन पर अकादमिक चर्चा को प्रोत्साहित करना है, क्योंकि जनजातीय समुदायों की संस्कृति, परंपराओं और विरासत के संदर्भ में भाषा का खास महत्त्व है.
विश्वभारती के लुप्तप्राय भाषा केंद्र के अध्यक्ष प्रो मनोरंजन प्रधान ने प्रतिनिधियों का आधिकारिक रूप से स्वागत किया और विशेषकर लुप्तप्राय भाषाओं के संदर्भ में विश्वभारती की गतिविधियों और विश्वभारती में किए जा रहे अनुसंधान और विकास कार्यों का परिचय दिया. उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि इस संगोष्ठी में हुई चर्चाएं बहुमूल्य जानकारियां प्रदान करेंगी और विशेष रूप से शिक्षा प्रणाली और समाज में नई शिक्षा नीति-2020 पर केंद्रित नीतियों के संदर्भ में हमारे समुदायों में बहुभाषिकता को बढ़ावा देने और समर्थन के लिए नए विचारों को प्रेरित करेंगी. विश्वभारती के डा अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी ने डिजिटल माध्यमों का उपयोग करके देश में बहुभाषिकता को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्यों को साझा किया. उन्होंने लुप्तप्राय भाषा केंद्र विश्वभारती द्वारा विकसित वेब पोर्टल और एंड्राइड एप्लिकेशन के बारे में भी परिचय दिया. संगोष्ठी के दौरान लुप्तप्राय जनजातीय भाषाओं पर दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया. संगीत भवन विश्वभारती के छात्रों द्वारा उद्बोधिनी संगीत भी प्रस्तुत किया गया. संगोष्ठी में प्रस्तुत शोध पत्रों का विस्तार करते हुए मृत्युंजय प्रभाकर द्वारा निर्देशित ‘द ब्लाइंड ओपेरा’ नामक एक नाटक भी बहुभाषीय विधा में प्रस्तुत किया गया. नाटक में भारत की बहुभाषीय विविधता को दर्शाया गया और प्रतीकात्मक रूप से शामिल किया गया. संगोष्ठी के समापन सत्र में आदिवासी भाषाओं का अंग्रेजी-हिंदी-बांग्ला में अनुवाद करने वाले शब्दकोश के निर्माण से जुड़े आदिवासी संसाधन व्यक्तियों को सम्मानित किया गया. जिनमें कुरुख के लिए प्रवत कोराज और महाली भाषा के लिए संतोष टुडू शामिल थे. संगोष्ठी का समापन धन्यवाद ज्ञापन और शोध पत्र प्रस्तुतकर्ताओं को प्रमाण पत्र वितरण के साथ हुआ.