नई दिल्ली: “पिछले 75 वर्षों से हम राजभाषा को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं, लेकिन विगत 10 वर्षों में इसके तरीके में थोड़ा परिवर्तन आया है. हमें इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी स्थानीय भाषा के बोलने वालों के मन में हीनभावना न आए और हिंदी सामान्य रूप से सर्वसम्मति व सहमति से कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकृत हो.” यह बात केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने संसदीय राजभाषा समिति का सर्वसम्मति से पुनः अध्यक्ष चुने जाने पर कही. नई सरकार के गठन के पश्चात, संसदीय राजभाषा समिति के पुनर्गठन के लिए राजधानी में समिति की बैठक आयोजित की गई थी. वर्ष 2019 से 2024 के दौरान भी शाह ही समिति के अध्यक्ष थे. गृह मंत्री ने समिति के सभी सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि केएम मुंशी और एनजी आयंगर ने बहुत सारे लोगों से विचार-विमर्श करके ये तय किया था कि हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकार करने और इसे सरकारी कामकाज में आगे बढ़ाने के क्रम में किसी भी स्थानीय भाषा के साथ हिंदी की स्पर्धा न हो. नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद विगत 10 वर्षों में समिति ने लगातार यह प्रयास किया है कि हिंदी सभी स्थानीय भाषाओं की सहेली बने और इसकी किसी से कोई स्पर्धा न हो. गृह मंत्री ने कहा कि आजादी के 75 वर्षों के बाद ये बहुत जरूरी है कि देश का शासन देश की भाषा में चले और हमने इसके लिए कई प्रयास किए हैं. उन्होंने कहा कि हमने शब्दकोष का निर्माण किया और शिक्षा विभाग को साथ लेकर भारत की स्थानीय भाषाओं से हजारों शब्द हिंदी में जोड़ने का काम किया. कई ऐसे शब्द थे जिनका पर्याय हिंदी में उपलब्ध नहीं था, हमने अन्य भाषाओं से अनेक शब्दों को स्वीकार कर न सिर्फ हिंदी को समृद्ध किया और इसे लचीली बनाया बल्कि उस भाषा और हिंदी के बीच के रिश्ते को भी मजबूत करने का काम किया है.
केंद्रीय गृह मंत्री शाह ने कहा कि राजभाषा विभाग इस प्रकार का साफ्टवेयर बना रहा है जिससे आठवीं अनुसूची की सभी भाषाओं का अपने आप तकनीकी आधार पर अनुवाद हो जाए. इस कार्य के पूरा हो जाने पर हमारे कामकाज में हिंदी की बहुत तेज गति से स्वीकृति और विकास होगा. उन्होंने कहा कि विगत 5 साल में हमने बहुत परिश्रम कर समिति के प्रतिवेदन के तीन बड़े खंड राष्ट्रपति को दिए हैं, जो पहले कभी नहीं हुआ है. गृह मंत्री ने कहा कि हमें इस गति को बरकरार रखना है. केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि सहकार और स्वीकृति हमारे काम के दो मूल आधार होने चाहिए. उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसे लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ना है जिससे 2047 में स्वतंत्रता दिवस पर गौरव के साथ हमारे देश का संपूर्ण संचालन भारत की भाषाओं में हो. उन्होंने कहा कि हमें 1000 साल पुरानी हिंदी भाषा को एक लंबे समय तक नया आयुष्य देना, स्वीकृत बनाना और स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा हमारे सामने छोड़े गए कार्य को पूरा करने का प्रयास करना है. गृह मंत्री ने कहा कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, राजगोपालाचारी, केएम मुंशी और सरदार पटेल आदि में से कोई भी हिंदी भाषी क्षेत्र से नहीं आते थे, लेकिन इन सभी ने इस बात को महसूस किया था कि हमारे देश की एक ऐसी भाषा होनी चाहिए जो एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच संवाद का काम करे. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति में हमने इस बात पर जोर दिया है कि बच्चे की प्राथमिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में होनी चाहिए. जब बच्चा अपनी मातृभाषा को सीख लेता है तब वह देश की कई भाषाओं के साथ जुड़ जाता है.
शाह ने कहा कि मुंशी-आयंगार समिति के तहत एक बात तय की गई थी कि हर 5 साल में एक भाषा कमीशन बनेगा जो भाषाई विविधता पर विचार करेगा, लेकिन इसे भुला दिया गया. उन्होंने कहा कि यह समिति अगले 5 साल में हमारी भाषाई विविधता को बरकरार रखेगी और हमारे बीच हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाने का काम करेगी. गृह मंत्री ने कहा कि हिंदी अब एक प्रकार से रोजगार, तकनीक के साथ जुड़ गई है और नए युग की सभी तकनीकों को हिंदी भाषा से युक्त करने के लिए भारत सरकार भी विशेष प्रयास कर रही है. नई शिक्षा नीति में सभी मातृभाषाओं को महत्त्व देने का संकल्प लिया गया है उसे ये समिति बहुत आगे बढ़ाएगी. शाह ने कहा कि हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति मिलने के बाद यह 75वां वर्ष है. याद रहे कि संसदीय राजभाषा समिति का गठन राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 के उपबंधों के अंतर्गत वर्ष 1976 में किया गया था. समिति में 30 संसद सदस्य होते हैं जिसमें 20 लोक सभा और 10 राज्य सभा सदस्य होते हैं. बैठक में संसदीय राजभाषा समिति के लिए मनोनीत किए गए राज्यसभा और लोकसभा सांसदों के साथ राजभाषा विभाग की सचिव अंशुली आर्या के नेतृत्व में राजभाषा विभाग के अधिकारी भी बैठक में मौजूद रहे. संसदीय समिति के अधिकारियों ने भी बैठक में भाग लिया.