मुजफ्फरपुर: “भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने साहित्य सृजन के माध्यम से हिंदी में नवीन चेतना का सूत्रपात किया. उन्होंने कम आयु में विपुल साहित्य का सृजन किया. हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में उनका योगदान अतुलनीय है.” ये बातें एलएस कालेज के हिंदी विभाग में आयोजित भारतेंदु हरिश्चंद्र जयंती समारोह को संबोधित करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो राजीव झा ने कही. उन्होंने कहा कि भारतेंदु ने नाटक, कविताएं और उपन्यास का सृजन तो किया ही, हिंदी को उसका वर्तमान स्वरूप देने के लिए भी जी-तोड़ प्रयास किए. आज की खड़ी बोली, हमारी लिपि और भाषा को सशक्त बनाने में भारतेंदु का योगदान अविस्मरणीय है.
डा राजेश्वर कुमार ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्य राष्ट्रीय चेतना का बोध कराता है. उन्होंने अपने समय की विसंगतियों, अंग्रेजों की ओर से हो रहे शोषण को केंद्र में रखकर रचनाएं कीं. भारतेंदु हरिश्चंद्र न सिर्फ साहित्यकार थे, बल्कि समस्त हिंदी पट्टी के लिए वे हिंदी के अग्रदूत के रूप में भी प्रख्यात थे. इसीलिए उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है. वे हिंदी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे. हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेंदु हरिश्चंद्र से माना जाता है. भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में प्रसिद्ध भारतेंदु ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया. केवल यही नहीं हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का अकथ उपयोग किया. कार्यक्रम को डा शिवेंद्र, डा राधा व डा विजय समेत विभाग के छात्र-छात्राएं मौजूद थे.