चित्रकूट:भारत को और दुनिया को ऋषि परंपरा की आवश्यकता आज से ज्यादा कभी किसी युग में नहीं रही. चारों तरफ अशांति है, द्वेष्ता है, संकट है व्यक्ति, व्यक्ति के हित को नजरअंदाज करता है.उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बातआधुनिक जीवन में ऋषि परंपराविषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए कही. संगोष्ठी का आयोजन जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय चित्रकूट ने किया था. उपराष्ट्रपति ने वैश्विक दृष्टिकोण और राष्ट्र के मूल्यों को आकार देने में भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा के योगदान पर जोर दिया. उन्होंने कहा किवसुधैव कुटुंबकम्ऋषि परंपरा का मूल सिद्धांत है. वैश्विक कूटनीति में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर विचार प्रकट करते हुए धनखड़ ने कहा कि जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान दुनिया ने भारत के नेतृत्व को पहचाना जब हमारा ध्येय वाक्यएक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्यथा.

उपराष्ट्रपति ने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में निहित दो प्रमुख सिद्धांतों को विश्व मंच पर पेश करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना की. उन्होंने प्रथम सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत ने कभी भी विस्तारवाद की नीति का समर्थन नहीं किया अथवा दूसरों की भूमि के प्रति लालसा की भावना नहीं रखी. वहीं दूसरे सिद्धांत की ओर इंगित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी संकट में युद्ध समाधान नहीं है. उन्होंने कहा कि समाधान का केवल एक ही रास्ता है, बातचीत और कूटनीति. अस्थिरता और अनिश्चितता के दौर में मानवता का मार्गदर्शन करने में भारत के प्राचीन ज्ञान और आध्यात्मिक परंपराओं के वैश्विक प्रभाव पर टिप्पणी उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया के बड़े-बड़े लोग जब अशांति महसूस कर रहे थे, पथ से भटक गए, जब उन्हें अंधकार दिखाई दिया, तो उनका रुख भारत की तरफ हुआ. इस तकनीकी युग में भी, उन लोगों को मार्गदर्शन और रोशनी इसी देश में मिली. भारत की आध्यात्मिक एवं प्रौद्योगिकी प्रगति पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी ऋषि परंपरा की वजह से ही आज भारत जल में, थल में, आकाश में और अंतरिक्ष में बहुत बड़ी छलांग लगा रहा है.