नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मन की बात में हर बार कुछ अनूठी और प्रेरक कहानियां सुनाते हैं, जो हमारे आसपास की होती हैं, पर जिनसे हम अनजान होते हैं. इस बार भी मन की बात की 113वीं कड़ी में उन्होंने जानवरों से लगाव की कहानी सुनाई. प्रधानमंत्री ने कहा कि इनसानों और जानवरों के प्यार पर आपने कितनी सारी फिल्में देखी होंगी! लेकिन एक रीयल स्टोरी इन दिनों, असम में बन रही है. असम में तिनसुकिया जिले के छोटे से गांव बारेकुरी में, मोरान समुदाय के लोग रहते हैं और इसी गांव में रहते हैंहूलाक गिबन‘, जिन्हें यहांहोलो बंदरकहा जाता है. हूलाक गिबन्स ने इस गांव में ही अपना बसेरा बना लिया है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस गांव के लोगों का हूलाक गिबन के साथ बहुत गहरा संबंध है. गांव के लोग आज भी अपने पारंपरिक मूल्यों का पालन करते हैं. इसलिए उन्होंने वो सारे काम किए, जिससे गिबन्स के साथ उनके रिश्ते और मजबूत हों. उन्हें जब यह एहसास हुआ कि गिबन्स को केले बहुत पसंद हैं , तो उन्होंने केले की खेती भी शुरू कर दी. इसके अलावा उन्होंने तय किया कि गिबन्स के जन्म और मृत्यु से जुड़े रीति-रिवाजों को वैसे ही पूरा करेंगे, जैसा वे अपने लोगों के लिए करते हैं. उन्होंने गिबन्स को नाम भी दिए हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल ही में गिबन्स को पास से गुजर रहे बिजली के तारों के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था. ऐसे में इस गांव के लोगों ने सरकार के सामने इस मामले को रखा और जल्द ही इसका समाधान भी निकाल लिया गया. मुझे बताया गया है कि अब ये गिबन्स तस्वीरों के लिए पोज भी देते हैं. इसी तरह पशुओं के प्रति प्रेम में हमारे अरुणाचल प्रदेश के युवा साथी भी किसी से पीछे नहीं हैं. अरुणाचल में हमारे कुछ युवा साथियों ने थ्री-डी प्रिंटिंग का उपयोग करना शुरू किया  – जानते हैं क्यों ? क्योंकि वे वन्य जीवों को सींगों और दांतों के लिए शिकार होने से बचाना चाहते हैं. नाबम बापू और लिखा नाना के नेतृत्व में ये टीम जानवरों के अलग-अलग हिस्सों की थ्री-डी प्रिंटिंग करती है. जानवरों के सींग हों, दांत हों, ये सब थ्री-डी प्रिंटिंग से तैयार होते हैं. इससे फिर ड्रेस और टोपी जैसी चीजें बनाई जाती हैं. ये गजब का विकल्प है जिसमें बायोडिग्रेडेबल सामग्री का उपयोग होता है. ऐसे अद्भुत प्रयासों की जितनी भी सराहना की जाए कम है. मैं तो कहूंगा कि अधिक से अधिक स्टार्ट्स-अप इस क्षेत्र में सामने आएं ताकि हमारे पशुओं की रक्षा हो सके और परंपरा भी चलती रहे.