श्रीनगर: यह बात बहुत अहम है कि हमें अपनी जरूरतों के हिसाब से आगे बढ़ना चाहिए, न कि देखा-देखी में. हम अकसर देखा-देखी में कार्य कर जाते हैं. कश्मीर अपने हस्तशिल्प, कला और वास्तुकला के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. चिनार पुस्तक महोत्सव के दौरान आयोजित ‘चिनार टाक्स’ के सत्र में युवाओं को कश्मीर में सदियों से चली आ रही हस्तशिल्प परंपरा को संरक्षित करने के लिए प्रेरित किया गया. कश्मीर के मशहूर कलाकार वीर मुंशी ने कहा, ”समय के अनुसार बदलाव को अपनाने की जरूरत तो है लेकिन हमें अपनी पारंपरिक कला, वास्तुकला के संरक्षण की भी जरूरत है, जिससे कश्मीर की पहचान है. बदलाव का मतलब अपनी कला जैसे पेपर मेशी के डिजाइन में नया जोड़ना है, न कि आधुनिकता के चलते पेपर मेशी जैसी कला को समाप्त करना.”
एक और सत्र में ‘साहित्य और सौंदर्यशास्त्र में कश्मीर’ के योगदान पर चर्चा की गई है, जिसमें प्रसिद्ध कश्मीरी और हिंदी साहित्यकार और साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित सतीश विमल ने बताया कि एक रवायत जहां हम लालेश्वरी से शुरू मानते हैं, वहां से न मान, हमें उस इल्मी विरासत को बहुत पीछे से देखना चाहिए. हम जब कश्मीर के साहित्य, इल्मी तारीख लिखते हैं तब हमें इसे शुरू से लेकर आज तक लिखने की जरूरत है. शाम ढलते ही चिनार पुस्तक महोत्सव में गीत, नृत्य, कव्वाली से सज गया. मशहूर गायिका दीपाली वट्टल और उनकी टीम ने कश्मीर लोकगीतों से युवाओं का दिल जीत लिया. ‘हाय इश्क चुरो’ लोकगीत पर जम्मू एंड कश्मीर एकेडमी से आए कलाकारों ने नृत्य भी किया.