श्रीनगर: चिनार पुस्तक महोत्सव के दौरान शेर-ए-कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में भारत की लोक परंपरा, साहित्य, संस्कृति और शिक्षा के विविध रंग देखने को मिल रहे हैं. इसके लिए इस महोत्सव में तरह-तरह की कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है. डिजिटल युग का युवाओं पर प्रभाव, बढ़ते तनाव को कैसे कम करें, किस तरह हो युवाओं का मानसिक विकास, युवा किस तरह बनें रचनात्मक और कला, संस्कृति, अर्थशास्त्र, पर्यटन आदि क्षेत्रों में भी है युवाओं का भविष्य ऐसे विषय हैं, जिन पर यहां बात हो रही है. कम्युनिकेशन और सोशल मीडिया एक्सपर्ट शोभा कपूर ने युवाओं को तनाव कम करने की प्रक्रिया के बारे में बताया. युवा भावनात्मक रूप से कैसे मजबूत बनें, वे समय-समय पर आने वाली समस्याओं का समाधान कैसे निकालें, इस पर उन्होंने बताया कि सबसे पहले युवाओं को तनाव के कारणों का पता लगाना होगा. उन्हें अनुभव करना होगा तभी तनावपूर्ण स्थिति से बाहर आने का प्रबंधन कर सकते हैं.’ सोशल मीडिया और मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल के चलते युवाओं में सुनने की क्षमता कम होती जा रही है. ऐसे में बढ़ते तनाव पर काबू पाने के लिए शोभा कपूर ने बताया कि भावनात्मक रूप से मजबूत होने के लिए युवाओं को चार बातों को अपनाने की जरूरत है- सचेतन मन की, एक अच्छा श्रोता बनने की, सकारात्मक बातें करने की और समस्याओं का समाधान खोजने की. यदि बच्चे और युवा अपने गलत-सही हर तरह के अनुभवों को घर के सदस्यों, मित्रों से साझा करें, तो अवश्य ही तनाव को कम किया जा सकता है.
यात्रा-वृत्तांत के लेखक डा राजेश कुमार व्यास ने युवाओं के साथ अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने कश्मीर की परंपरा, संस्कृति पर बात करते हुए कहा कि यहां की मिट्टी बहुत उर्वर है, जिसमें मेहमाननवाजी समाई हुई है. उन्होंने युवाओं के सामने अपने बचपन में डायरी-लेखन से यात्रा-वृत्तांत के जाने-माने हस्ताक्षर बनने तक के सफर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘बच्चे, युवा यदि रोज की अनुभूतियों, अनुभवों को डायरी में लिखें तो वे भविष्य में एक अच्छे लेखक बन सकते हैं. हर किसी के लेखन में उसके संस्कार झलकते हैं. युवाओं को ध्यान रखना होगा कि किसी को रातों-रात प्रसिद्धि नहीं मिलती, सिद्धि से अपने मुकाम तक पहुंचा जा सकता है. पुस्तक महोत्सव में बच्चों को कश्मीरी संस्कृति से जोड़े रखने के भी प्रयास किए जा रहे हैं. सुबह से ही एसकेआईसीसी में बच्चों और कालेज के विद्यार्थियों की चहल-पहल देखने को यहां मिलती है. जाने-माने कश्मीरी बाल साहित्यकार अख्तर हुसैन से जब बच्चों ने कश्मीरी जुबां में कहानियां सुनाईं तो पूरा चिल्ड्रन कार्नर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. बच्चे जिन्हें ड्राइंग करना पसंद है, उन्होंने देश में विजुअल आर्ट के लिए मशहूर करन सिंह से स्कैच आर्ट की बारीकियों के बारे में जाना. पुणे के निकिता मोगे के पायलवृंदा ग्रुप ‘कलर्स आफ भारत’ ने गणेश वंदना, कथक और लावणी की जुगलबंदी और भारत के अलग-अलग क्षेत्रों पंजाबी, गढ़वाली, मराठी, राजस्थानी, गुजराती, कश्मीरी नृत्य से देश की लोक परंपरा और संस्कृति की विविधता में एकता को दर्शाया.