श्रीनगर: ”भारत में अलग-अलग भाषाओं में लिखे साहित्य का विकास हुआ है, जिनकी अलग-अलग रूह है. पाठक महादेवी को पढ़ें या लालेश्वरी को पढ़ें, उनकी बातें एक समान ही लगेंगी.” यह बात डल झील के किनारे आयोजित चिनार पुस्तक महोत्सव के दौरान ‘काव्यशास्त्र पर कश्मीर के प्रभाव’ विषय पर अपनी बात रखते हुए कश्मीरी, उर्दू और हिंदी भाषा के जाने-माने लेखक और साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित डा सतीश निगम ने कही. उन्होंने कहा कि कश्मीर की सूफी कविता की भारत के साहित्य पर गहरी छाप है. उसमें धार्मिक आस्था तो है ही, लेकिन वह उससे ऊपर उठकर एक ऐसे स्तर पर बात करती है कि जहां हमें लगता है कि हिंदुस्तान की हजारों साल की तपस्या का फल मिला हुआ है.” भारत की ज्ञान परंपरा पर बात करते हुए कहा कि भारत की ज्ञान परंपरा हजारों वर्ष की रही है, जिसमें काव्यशास्त्र, नाट्यशास्त्र, समाजशास्त्र पर बात हुई है और दर्शन की कितनी अद्भुत चीजें कश्मीर ने दुनिया को दी हैं और वे सारी चीजें हमारे जीवन में घुम-मिल गई हैं.
इस चर्चा में शामिल केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की प्रोफेसर संगीता गुंदेचा ने कश्मीर के काव्यशास्त्र को भारत ही नहीं, दुनियाभर की कविताओं का मूल बताया. उन्होंने कहा, ”कश्मीर को ज्ञान का पालना कहा जाता है. भामाह, कुंतक, अभिनव गुप्त की बात किए बिना कहीं भी काव्यशास्त्र को पढ़ाया नहीं जा सकता. कश्मीर एक बहुत बड़ी परंपरा का वाहक है. यहां के काव्यशास्त्र ने पूरी दुनिया के काव्य को प्रभावित किया है. यहां का काव्यशास्त्र बहुत ही समृद्ध है.” चिनार पुस्तक महोत्सव की यह शाम गजलों और सूफी गीतों से गूंज उठी. एक तरफ जहां कला-ए-कश्मीर में कश्मीरी लोकगायक वाहिद जिलानी की टीम ने कश्मीर की लोक संस्कृति को लोकगीतों और लोकनृत्य के जरिये प्रदर्शित किया, वहीं मशहूर गायक मेहरान शाह के कश्मीरी, डोगरी, पहाड़ी, पंजाबी और हिंदी सूफी गीत और गजलों का भी युवाओं ने खूब लुत्फ उठाया.