जमुईः मैथिलीशरण गुप्त की 124वीं जयंती पर केकेएम कालेज के हिंदी विभाग के तत्वावधान में एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई. इसकी अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष डा कैलाश पंडित ने की. मुख्य अतिथि प्राचार्य डा चंद्रमा सिंह थे. उन्होंने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त ऐसे प्रसिद्ध कवि थे, जिनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं. उनकी कविताएं स्वतंत्रता आंदोलन के समय लिखी गई थीं. उनमें राष्ट्र और देश प्रेम की भावना कूट-कूट कर भरी थी. उनकी लेखनी देशभक्ति, समाज सुधार, महिला शिक्षा और अधिकार पर भी चली है. डा गौरी शंकर पासवान ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रतिनिधि थे. वे प्रकृति के चतुर चितेरे थे. उनका जन्म 3 अगस्त, 1886 को यूपी के झांसी में हुआ था. उनका व्यक्तित्व और कृतित्व ही उन्हें अमर बनाता है. ‘साकेत‘ और ‘यशोधरा‘ इनकी अमर रचना हैं. गुप्त ने अपनी कविताओं में प्रकृति के सौंदर्य और उसकी महत्ता को उजागर किया है. पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के प्रति प्रेम को काफी महत्त्व दिया है. वर्तमान में जब पर्यावरण संरक्षण एक बड़ी चुनौती बन गई है. उनके विचार अत्यंत प्रासंगिक हैं. गुप्त जी की कविताएं हमारी संस्कृति और परंपराओं को समर्पित थीं. उनके विचार सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित और संवर्धित करने में सहायक हैं. उन्होंने राम और कृष्णा की समान भाव से उपासना की है. गांधी के सिद्धांतों को भी अपने कविताओं में पिरोया है. सत्याग्रह, अहिंसा, अछूतोद्धार की भावना से सिद्धांतों का निरूपण किया है. उनके साहित्य और विचारों से लोगों को प्रेरणा मिलती है. ‘नहुष का पतन‘ जैसी श्रेष्ठ रचना के माध्यम से संदेश दिया है कि व्यभिचार और बुरी नजर वालों का मुंह काला होता है. उसे स्वर्ग नहीं बल्कि नर्क मिलता है.
अध्यक्षीय संबोधन में हिंदी के विभागाध्यक्ष डा कैलाश पंडित ने कहा कि गुप्त हिंदी साहित्याकाश के चंद्र थे. उनकी कविताएं सामाजिक सुधार की पक्षधर थी. उन्होंने जातिवाद, अंधविश्वास और समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की. उनके विचार आज भी सामाजिक समरसता और सुधार के लिए प्रासंगिक हैं. ऐसे कवियों पर हमें गर्व है, जिन्होंने अपनी लेखनी से भारत का मान बढ़ाया और सिर ऊंचा उठाया. अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा अनिंदो सुंदर पोले ने कहा कि गुप्त जी महान काव्यकार थे. उन्होंने ‘यशोधरा‘ काव्य के माध्यम से गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के त्याग और पीड़ा का मार्मिक वर्णन किया है. डा दीपक कुमार ने कहा कि सुमित्रानंदन पंत हिंदी के उद्भट कवि थे. अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्होंने विदेशी पराधीनता से मुक्त कराने के लिए सोये जनमानस को झकझोरने व जागने का काम किया है. हिंदी की असिस्टेंट प्रोफेसर डा श्वेता सिंह ने कहा कि राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के सबसे बड़े कवि थे. वे महिला शिक्षा एवं अधिकार के हिमायती थे. अपनी रचनाओं के माध्यम से नारी को सशक्त व स्वतंत्र बनाने का भी समर्थन किया है. भारत-भारती काव्य स्वतंत्रता संग्राम के प्रति गुप्त जी के विचारों का प्रतिबिंब है. मौके पर मौके पर प्रो सरदार राम, डा उदय नारायण घोष, डा सत्यार्थ प्रकाश, डा रूपम कुमारी, डा लिसा, कार्यालय सहायक रवीश कुमार सिंह आदि ने भी मैथिलीशरण गुप्त के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने विचार व्यक्त किये. उधर कानपुर के ओंकारेश्वर सरस्वती विद्या निकेतन इंटर कालेज जवाहर नगर में भी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती मनाई गई, प्रधानाचार्य राममिलन सिंह ने गुप्त के चित्र पर पुष्प अर्पित किए. उन्होंने कहा कि गुप्त जी की रचनाएं राष्ट्रीय चेतना से ओतप्रोत हैं. उनकी कविताएं हर व्यक्ति को राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए प्रेरित करती हैं. दिव्यांशी त्रिपाठी व अंश प्रताप सिंह ने गुप्त की रचनाओं ‘नर हो न निराश करो मन को…‘, ‘हम कौन थे क्या हो गए‘ की प्रस्तुति देकर मन मोह लिया. दिव्यानंद ने काव्य पाठ किया. लावण्या मिश्रा, वैष्णवी गौतम,आद्या तिवारी व संस्कृति आनंद ने भी उनके जीवन से जुड़ी प्रस्तुतियां दीं. यहां प्रतिभा सिंह चौहान, शुभम पांडेय, अभिषेक त्रिपाठी, शिखा शुक्ला, मनीष देव सिंह आदि मौजूद रहे.