कोलकाता: “भारतीय साहित्य का समाज पर गहरा प्रभाव है और यह समाज को जोड़ने का महत्त्वपूर्ण माध्यम है.” मराठी आलोचक आशुतोष आदोनी ने भारत सरकार के सूचना और संस्कृति मंत्रालय, मौलाना अबुल कलाम आजाद इंस्टीट्यूट आफ एशियन स्टडीज और भारतीय सांस्कृतिक न्यास की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए यह बात कही. अपने वक्तव्य में अदोनी ने कहा कि साहित्य एक ऐसा माध्यम है जो समाज के साथ जोड़ कर रखता है और समाज की समस्याओं, उसकी भावनाओं और उसकी संस्कृति को व्यक्त करता है. उन्होंने कहा कि संविधान की अनुसूची में शामिल भारत की सभी 22 भाषाओं के साहित्य बेहद धनी है और भारतीय सभ्यता और संस्कृति को संजो कर रखने में इन भाषाओं ने अतुलनीय भूमिका निभाई है. इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ही देश की सांस्कृतिक विरासत को बचाया जा सकता है.
इस अवसर पर मौलाना अबुल कलाम आजाद इंस्टीट्यूट आफ एशियन स्टडीज के निदेशक डा सरूप प्रसाद घोष ने कहा कि साहित्य समाज की प्रगति और परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है. साहित्य समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करता है और समाज की समग्र प्रगति में योगदान देता है. भारतीय भाषाओं के साहित्य ने राष्ट्रवाद और धार्मिक भावनाओं को हमेशा संजोकर रखा है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य साहित्य के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाना और समाज की विभिन्न समस्याओं को उजागर करना है. कार्यक्रम का समापन साहित्य और समाज के बीच के संबंधों को और मजबूत बनाने के संकल्प के साथ हुआ. भारतीय सांस्कृतिक न्यास की ओर से निलांजना राय ने बताया कि चर्चा बेहद सार्थक रही.