कोलकाता: “प्रेमचंद भारत को जानने की खिड़की हैं. उनका कथा साहित्य भारतीय आत्मा की खोज है जो संकुचित राष्ट्रवाद के वर्तमान युग में भी मानवतावादी प्रेरणा देता है.” यह बात भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डा शम्भुनाथ ने ‘प्रेमचंद जयंती‘ के अवसर परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से ‘प्रेमचंद और आज का विश्व‘ विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कही. इस अवसर पर रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हितेंद्र पटेल ने कहा कि प्रेमचंद ने 1919 से 1936 के बीच की अपनी साहित्यिक यात्रा में उस युग का ऐतिहासिक यथार्थ चित्रित किया है. किसान को साहित्य के केंद्र में रखकर उन्होंने अपने समय का सबसे क्रांतिकारी कार्य किया है. यांत्रिक संस्कृति के मुकाबले में साहित्यिक संस्कृति के निर्माण के क्रम में उनकी भूमिका ऐतिहासिक है. विश्वभारती शांतिनिकेतन के प्रो राहुल सिंह ने कहा कि प्रेमचंद की वैचारिक और रचनात्मक यात्रा में एक बदलाव दिखता है. उन्होंने जहां से लेखन शुरू किया था, उससे बिलकुल अलग जगह ले जाकर खत्म किया. 1930-31 के बीच प्रेमचंद का अंतिम चरण सबसे महत्त्वपूर्ण है. अपने तमाम सुधारवादी रास्तों की, जिनकी वकालत उन्होंने अपनी शुरुआती रचनाओं में की थीं, इस कालखंड में वे इन्हें खारिज कर देते हैं. इस संदर्भ में उनमें एक मोहभंग भी देखने को मिलता है.
कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रो राजश्री शुक्ला का कहना था कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व उदार था, जिसमें विपरीत विचारधारा वाले साहित्यकारों के महत्त्व का स्वीकार भी था. उनका लेखन आज भी इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि इनके शब्दों के पीछे आंतरिक ईमानदारी थी. डा रामप्रवेश रजक ने कहा कि प्रेमचंद जब लिख रहे थे तब देश को आजादी नहीं मिली थी. उनके लिखने का उद्देश्य स्वराज प्राप्ति था. युवा आलोचक डा इतु सिंह ने कहा कि प्रेमचंद के संपादकीय लेखों में भारत के उस दौर के राजनीतिक इतिहास का ही नहीं विश्व के राजनीतिक परिदृश्य का विश्वसनीय ब्यौरा मिलता है. प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि प्रेमचंद आज भी हमारे सबसे समर्थ भाषा शिक्षक हैं. उनका साहित्य पुनर्निर्माण का साहित्य है. वे हमें मानसिक दासता और साम्प्रदायिकता के खिलाफ सचेत करते हैं तथा महाजनी सभ्यता अर्थात पूंजीवाद के खतरों से आगाह करते हैं. कार्यक्रम का संचालन मृत्युंजय श्रीवास्तव ने किया. उन्होंने कहा कि दुनिया में जैसे जैसे दुर्दिन गहरा होता जाएगा, प्रेमचंद अधिक काम के सिद्ध होते जाएंगे. प्रेमचंद वह एक ऊंचा टीला हैं जिस पर खड़े होकर दुनिया को स्कैन किया जा सकता है. इस अवसर पर नाट्य मंच द्वारा प्रेमचंद की कहानी ‘हिंसा परमो धर्म:‘ का मंचन किया गया. प्रो संजय जायसवाल ने कहा प्रेमचंद ने सांप्रदायिक ताकतों को चिह्नित करते हुए उनसे बचने का संदेश दिया है. आज के धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के इस दौर में प्रेमचंद की रचनाएं भरोसे की जमीन हैं. मिशन के संरक्षक रामनिवास द्विवेदी ने कहा संस्कृतिकर्मियों की यह प्रस्तुति प्रासंगिक है. यह मंचन आदमियत का आख्यान है.