नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की चौथी वर्षगांठ के अवसर पर नई दिल्ली के मानेकशा सेंटर आडिटोरियम में अखिल भारतीय शिक्षा समागम 2024 का उत्सव मनाया. कार्यक्रम में शिक्षा राज्य मंत्री और कौशल विकास एवं उद्यमशीलता राज्य मंत्री-स्वतंत्र प्रभार जयंत चौधरी और शिक्षा एवं उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास राज्य मंत्री डा सुकांत मजूमदार, उच्च शिक्षा विभाग के सचिव के संजय मूर्ति; स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव संजय कुमार; शिक्षाविद, विश्वविद्यालयों के कुलपति, अधिकारी और छात्रों ने भी भाग लिया. अखिल भारतीय शिक्षा समागम 2024 भारतीय ज्ञान प्रणालियों की समृद्ध विरासत और समकालीन प्रासंगिकता का उत्सव मनाने वाला एक ऐतिहासिक आयोजन होने का वादा करता है. जुलाई 2022 में वाराणसी में आयोजित अखिल भारतीय शिक्षा समागम के पहले कार्यक्रम का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था. इसका आयोजन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रभावी, सुचारु और समय पर कार्यान्वयन के लिए सभी हितधारकों के लिए एक साथ आने की गुंजाइश बनाने, विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच मजबूत संबंध स्थापित करने और उच्च शिक्षा संस्थानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने एवं समाधानों को स्पष्ट करने के उद्देश्यों के साथ किया गया था. इस आयोजन में उपस्थित मंत्रियों ने शिक्षा मंत्रालय के भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग द्वारा तैयार की गई कई पुस्तकों और लेक्चर नोट्स का विमोचन किया. इनका उद्देश्य छात्रों और शिक्षकों के बीच समन्वय को बढ़ावा देना है. इनमें मास्टर प्रशिक्षकों के लिए संकाय प्रशिक्षण कार्यक्रम के लेक्चर नोट्स का संकलन भी शामिल था, जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सहयोग से शिक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार किया गया था. ए संकाय प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले वर्ष तीन चरणों में आयोजित किए गए थे, जिसमें भारतीय ज्ञान प्रणाली प्रभाग के अनुराग देशपांडे और एस श्रीराम संयोजक के रूप में कार्य कर रहे थे. पुस्तक में भारतीय ज्ञान प्रणाली के तत्व और सिद्धांत, भारतीय ज्ञान प्रणाली के दार्शनिक आधार, भारतीय ज्ञान प्रणाली के तरीके- तंत्रयुक्ति, रसायन विज्ञान, कृषि, आयुर्वेद, गणित जैसे अनुशासन-विशिष्ट विषयों के साथ-साथ नीतिशास्त्र और पंचतंत्र सहित विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है.
एक और उल्लेखनीय विमोचन ‘कौटिल्याज अर्थशास्त्र: टाइमलेस स्ट्रैटेजिस फार माडर्न गवर्नेंस‘ था, जिसे चाणक्य विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और आईकेएस प्रभाग अनुसंधान परियोजनाओं के एक प्रमुख अन्वेषक विनायक रजत भट्ट और चाणक्य विश्वविद्यालय में पूर्व अनुसंधान सहयोगी तेजस्वी शुक्ला ने लिखा था. यह पुस्तक राज्य शिल्प पर कौटिल्य के काम की एक सुलभ व्याख्या प्रदान करती है, जो समकालीन उदाहरणों, दृश्य सहायता और वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों से समृद्ध है. यह विद्वानों, छात्रों और पेशेवरों के लिए एक मूल्यवान संसाधन के रूप में कार्य करता है, जो प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शासन को जोड़ता है. 5वीं पीढ़ी के कलारी और सिद्ध के प्रैक्टिशनर एवं विद्वान, अगस्त्यम कलारी, त्रिवेंद्रम में आईकेएस सेंटर फार कलरीपयट्टू और सिद्ध परंपराओं के सह-प्रमुख अन्वेषक गुरुक्कल डा एस महेश द्वारा लिखित पुस्तक, ‘मर्म कन्नडी: डिकोडिंग द ह्यूमन बाडी द सिद्ध वे‘, ऋषि अगस्त्य की शिक्षाओं पर गहराई से चर्चा करती है. यह पुस्तक मानव शरीर में मूलभूत शक्ति केंद्रों, मर्मों का विवरण देती है, तथा सिद्ध चिकित्सा, कलारीपयट्टू और वर्माकलाई के बारे में जानकारी प्रदान करती है. यह पुस्तक अगस्त्य के दर्शन की गहन शिक्षाओं और ज्ञान को दर्शाती है. आज जारी की गई एक अन्य पुस्तक, ‘शोध विजया‘, विजयनगर कर्नाटक साम्राज्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए दक्षिणी राजवंशों की भव्यता पर शोध लेखों का एक संग्रह है. डा मनोरमा बीएन द्वारा संपादित और निर्देशित तथा ‘नूपुरा भ्रामरी‘- कर्नाटक में भारतीय ज्ञान प्रणालियों के लिए एक केंद्र द्वारा प्रकाशित, इस प्रकाशन में रंगमंच और नृत्य से लेकर प्राचीन शास्त्रों एवं समकालीन अनुप्रयोगों तक के कई विषयों को शामिल किया गया है. यह नूपुरा भ्रामरी भारतीय ज्ञान प्रणाली केंद्र का 13वां प्रकाशन है. आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर मोहन राघवन द्वारा भारतीय ज्ञान प्रणाली और विरासत उद्योग की स्थिति पर रिपोर्ट भी कार्यक्रम के दौरान जारी की गई. यह रिपोर्ट इस बात का अनुमान लगाती है कि सामूहिक भारतीय पहचान और विरासत से प्रेरित होकर भारतीय ज्ञान प्रणाली और विरासत उद्योग अगले दशक में संभावित रूप से एक ट्रिलियन डालर का क्षेत्र बन जाएगा. यह पाककला, वस्त्र, पर्यटन, आयुर्वेद और अन्य सहित विभिन्न उद्योग क्षेत्रों की खोज करता है, जो भारतीय लोकाचार द्वारा एकीकृत उनकी विकास क्षमता पर प्रकाश डालता है.