अमेठीः अवधी साहित्य संस्थान की ओर से मां भगवती कालिका के सभागार में कवि-गोष्ठी का आयोजन हुआ. इस अवसर पर संस्थान के अध्यक्ष डा अर्जुन पाण्डेय ने कहा कि अवधी संस्कृति की दुनिया में एक अलग पहचान है, जिसका हिंदी साहित्य संवर्धन में सर्वाधिक योगदान है. जहां मलिक मोहम्मद जायसी का पद्मावत ठेठ अवधी का मूल ग्रंथ है वहीं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ है. हम सभी को निजी भाषा पर गर्व होना चाहिए. कार्यक्रम में पधारे कवियों में रामेश्वर सिंह निराश ने पढ़ा, ‘कहवा हेरान बचपनवा कै बाग हो, मकरा कै रोटी करमुआ के साग हो.‘ डा केसरी शुक्ला ने पढ़ा, ‘चिमनी मा तेल डारिके काटिथै महीना. टंकी के मालिकन के तो पेटै नहीं भरत.‘ चंद्रप्रकाश पांडे मंजुल ने पढ़ा, ‘दर्शन मिलै जेकै कुछ पुण्य बाटै, इ पावन आश्रम च्यवन मुनि के आटै,’ जगदंबा तिवारी मधुर ने पढ़ा, ‘बिना तेरे नहीं साजन मधुर अब नींद आती है.‘ राम बदन शुक्ला पथिक ने पढ़ा, ‘मैली हुई गंगा है झुक रहा तिरंगा है.‘ राम कुमारी संसृति ने पढ़ा, ‘सुनो जानकी जनकपुर में ऋषि विश्वामित्र आए हैं.‘ आशुतोष गुप्त ने पढ़ा, ‘सपने जो देखे पूरे कर पाएंगे.‘
कवि गोष्ठी की अगली प्रस्तुति सुनीता श्रीवास्तव की थी. उन्होंने पढ़ा, ‘कभी जमीं तो कभी आसमां के लिए.‘ राजेंद्र शुक्ला अमरेश ने पढ़ा, ‘प्रकट भाई हैं जहां राम भगवान हो, अवध नगरिया कै बाटै बड़ी शान हो.‘ हरिनाथ शुक्ला हरि ने पढ़ा, ‘आए सावन में सांवरिया झूम के छाई बदरिया.‘ राधेश्याम दीन ने पढ़ा, ‘घट रहा है मन जाने क्या करेंगी यह हवाएं.‘ डा कण्व कुमार मिश्रा इश्क सुल्तानपुरी ने पढ़ा, ‘खेत का खुदा मालिक खाली बार दाना है.‘ अभिजीत त्रिपाठी ने पढ़ा, ‘यादें दिल में बो जाते हैं, यूं ही लड़के खो जाते हैं.‘ सुरेश नवीन ने पढ़ा, ‘मां बदरा आइके बरस गएं अंगनवा में.‘ शब्बीर अहमद सूरी ने पढ़ा, ‘मेरा दिल आईना है टूट सकता है, साथ जो चलता नहीं है छूट सकता है.‘ गोष्ठी में सचिन समर्थ, अखिलेश मिश्रा, दुर्गेश दुर्लभ ने भी कविता पाठ किया. संचालन अनिरुद्ध मिश्रा ने किया. इस मौके पर केएन शर्मा, महेंद्र द्विवेदी, एसएन पाल, अनंत राम शुक्ला, विद्यालंकर तिवारी, रामदेव सिंह, अनुभव मिश्रा, डा अभिमन्यु पांडे, रीता पांडे, अदिति पांडे सहित बड़ी संख्या में कविता प्रेमी उपस्थित थे.