नई दिल्ली: इजरायल-फिलिस्तीन का विवाद मूल रूप से धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक मसला है. वर्तमान में फिलिस्तीन में बच्चों की इतनी बुरी हालत पर भी दुनिया का खामोश रहना इंसानियत की हार है. ऐसे समय में इस मुद्दे पर एक किताब का आना बेहद सामयिक और जरूरी हस्तक्षेप है. यह बातें इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्सी में नासिरा शर्मा की किताब ‘फिलिस्तीन: एक नया कर्बला’ के विमोचन और परिचर्चा के दौरान वक्ताओं ने कही. इस मौके पर पश्चिमी एशियाई मामलों के विशेषज्ञ प्रो एके रामाकृष्णन ने कहा, “इस किताब में लेखक ने ऐतिहासिक और समसामयिक दोनों आधारों पर बहुत ही गहन विचार करके समाधानपरक लेख लिखे हैं. उन्होंने इस किताब के जरिए हमें फिलिस्तीन के वर्तमान हालात पर एक दृष्टिकोण दिया है. यह बेहद सामयिक और जरूरी हस्तक्षेप है. साथ ही यह एक राजनीतिक हस्तक्षेप भी है क्योंकि यह किताब हमें एक्शन के लिए प्रेरित करती है. लेखक ने इस किताब को हमारे सामने लाकर अपने हिस्से का योगदान किया है और हमें भी अपने हिस्से काम करने के लिए प्रेरित किया है.” उन्होंने कहा कि हमारी आज़ादी की लड़ाई के नेताओं ने भी फिलिस्तीन से जुड़ाव दिखाया था क्योंकि जिस समय भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरूद्ध संघर्ष चल रहा था उस समय फिलिस्तीन भी उससे पीड़ित था. मुझे उम्मीद है कि यह किताब एक नई खिड़की खोलेगी. यह किताब सभी के लिए पठनीय है लेकिन विशेष रूप से यह उन युवाओं के लिए उपयोगी है जो इजरायल-फिलिस्तीन के मसले और समझना और उस पर काम करना चाहते हैं.

रक्षा मामलों के विशेषज्ञ-पत्रकार कमर आगा ने कहा कि इजरायल-फिलिस्तीन का विवाद मूल रूप से धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक मसला है. इस समय फिलिस्तीन के हालात यह है कि वहां के लोगों को इंसान समझा ही नहीं जा रहा है. उन्हें जानवरों की तरह मारा जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि सभी यहूदी फिलिस्तीनी नागरिकों से दुश्मनी का व्यवहार करते हैं. आज भी यहूदियों का एक बड़ा तबका ऐसा है जो इस हिंसा के पूरी तरह से खिलाफ है. लेखिका नासिरा शर्मा ने कहा कि फिलिस्तीनी जनता पर जुल्म और अत्याचार पहले भी मैंने अपनी आंखों से देखे हैं लेकिन जो अब हो रहा है, उतना बर्बर जनसंहार पहले कभी नहीं हुआ. जिस तरह से फिलिस्तीन में बच्चों और किशोरों को निशाना बनाया जा रहा है और उनकी जो हालत हुई है, उतनी बुरी हालत पूरी दुनिया में पहले कभी नहीं हुई. इस पर भी पूरी दुनिया जिस तरह से खामोश है, उसे देखकर लगता है कि यह सिर्फ फिलिस्तीन की नहीं, बल्कि इंसानियत की हार है.उन्होंने कहा कि जब फिलिस्तीन पर हमला हुआ तो मेरे अंदर का पत्रकार बेचैन हो उठा. मुझे लगा कि मैं इस पर अभी काम नहीं तो कब करूंगी? यह किताब उसी बेचैनी का नतीजा है. प्रसिद्ध रंगकर्मी और कवि अशोक तिवारी ने किताब के कुछ चुनिंदा अंशों का पाठ किया.