काशीपुर: बीपी कोटनाला के सौजन्य से साहित्य दर्पण ने मानपुर रोड पर एक कविता गोष्ठी का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता वीरभूमि समिति के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने की. संचालन ओम शरण आर्य चंचल ने किया. इस अवसर पर बीपी कोटनाला द्वारा रचित ‘श्री कृष्ण भक्ति पुष्पांजलि‘ एवं कैलाश चंद्र यादव द्वारा रचित गीत माला संग्रह ‘आंखें तेरी जानम पैमाने दो‘ का विमोचन भी किया गया. कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन कर किया गया. सरस्वती वंदना भोला दत्त पांडे ने प्रस्तुत किया. जितेंद्र कुमार कटियार ने सुनाया, ‘मिल जाएगा सपनों का संसार इच्छाएं कम करके देखो, छंट जाएगा गम जीवन से यार सबको हंसा करके देखो.‘ डा मनोज आर्य ने पढ़ा, ‘अल्फाज जिन्हें साफ सुनाई नहीं देते, हम उनको कोई अपनी सफाई नहीं देते.‘ कैलाश चंद्र यादव की कविता के बोल थे, ‘ऐसे-ऐसे गम देता है अपना ही खून दगा देता है, दिल से लिखे अफसाने पल में झूठ बता देता है,’ तो विवेक प्रजापति की पंक्तियां थीं, ‘वक्त थोड़ा बिता के जाना तुम फर्ज अपना निभा के जाना तुम, राह में यदि मिले शहीद का घर अपने सर को झुका के जाना तुम‘. ओम शरण आर्य चंचल ने सुनाया, ‘वाटिका में चलो घूम आए प्रिये, क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले, गीत हर प्यार का आओ गायें प्रिये क्या पता यों समय फिर मिले ना मिले.‘
कुमार विवेक मानस ने पढ़ा, ‘जख्म छुपाना भी यहां हुनर बहुत है खास, यूं मुट्ठी में है नमक धर लो तुम विश्वास‘ तो डा प्रतोष मिश्रा की कविता के बोल थे, ‘राम ही साध्य हैं राम आराध्य हैं, राम हैं सारे जग में समाए हुए.‘ शेष कुमार सितारा- आंगन में दीवारें खिंचना कैसा लगता है, मां के आंचल का बट जाना कैसा लगता है.‘ कैलाश चंद्र जोशी ने पढ़ा, ‘भर ली है ऊंची उड़ान हमने, बना लिया है मंगलयान हमने, कर ली तरक्की मशीनों में बहुत, बहुत पीछे छोड़ दिया इंसान हमने.‘ वीके मिश्रा की कविता के बोल थे, ‘संगीत का मेला है तुम गीत बन के आना, आकर के फिर ना जा बस दिल में समा जाना,’ तो डा सुनीता कुशवाहा ने सुनाया ‘खनन माफिया को जब से पता चला चांद पर धरती से अधिक लोहा है, वे चांद से लोहा लेने चले गए.‘ सुरेंद्र भारद्वाज की कविता थी, ‘खामोशी की भी जुबान होती है बदनामी भी एक पहचान होती है.‘ डा यशपाल रावत ने पढ़ा, ‘नशा सा है यूं क्या सच कह दूं, नगमें बिछा दूं या धुन बना दूं, एक खुशी जो मचल रही है दिल में, दिल खोल कर आज सबको बता दूं.‘ विजय प्रकाश कुशवाहा कुश की कविता के बोल थे, ‘द्वार दिल के खुले हैं चले आइये, आपका ही घर है चले आइये.‘ पद्मादत्त देवलाल ने पढ़ा, ‘मांग के भांग बहुत पिए हर, नांदि तो भार की मार सहे.‘ तो नवीन सिंह नवीन की कविता यों थी, ‘देख के सूर्य का कैच, बदल गया टी20 वर्ल्ड मैच.‘ अनुराज चौधरी ने पढ़ा, ‘मत जाहिर करो प्यार को जाहिर भले तुम, हमें एहसास है तुम्हारा.‘ तो बीपी कोटनाला ने सुनाया, ‘मत करो परवाह जमाने की तुमको तो प्राण प्रतिष्ठा करनी है.‘ काव्य संध्या में निर्मला कोटनाला, जितेंद्र दत्त, तेजस्वी कोटनाला, आदित्य चौहान, धर्मेंद्र चौहान, सोनाक्षी शर्मा आदि उपस्थित रहे.