शिमला: “वर्तमान में विश्व वैचारिक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. विभिन्न मत संप्रदायों का वैचारिक, राजनीतिक प्रचार-प्रसार पर ध्यान केंद्रित होने लगा है और सभी अपनी विचारधारा को प्रमुखता से सामने ला रहे हैं. ऐसे में सत्य सनातन हिंदू धर्म संस्कृति को पूरे विश्व में वैज्ञानिक, व्यावहारिक, सामाजिक, पारिवारिक तथा सांस्कृतिक आधार पर एकमत से स्वीकार किया गया है. क्योंकि सनातन मानवता पर केंद्रित है.” यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक प्रो वीर सिंह रांगड़ा ने मातृवंदना संस्थान द्वारा आयोजित ‘साहित्य संवाद‘ में बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कही. उन्होंने कहा कि सनातन व्यक्ति परक नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही विचारधारा का सिर है, जो ऋषि मुनियों के माध्यम से भारतीय ज्ञान परंपरा के रूप में प्रतिष्ठित हुआ और आज भी वैदिक, लौकिक, साहित्यिक तथा मौखिक परंपरा के रूप में लोक साहित्य में विद्यमान है. रांगड़ा ने कहा कि इसी राष्ट्रवाद के विचार को के प्रचार के लिए विभिन्न संस्थाएं जागरण पत्रिकाओं और विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से कार्य कर रहे हैं जो समाज को संगठित करने की दिशा में कारगर साबित हुआ है. अतीत से सीख और वर्तमान में भविष्य की चिंता सद् साहित्य के विमर्श से ही संभव है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में पत्रिकाओं और पुस्तकों के साथ डिजिटल माध्यम से एक वैचारिक आंदोलन चल रहा है जिसमें कुछ राष्ट्र विरोधी ताकतें भारतीयता, सनातन, अस्मिता और परंपराओं को चुनौती दे रही हैं, ऐसे में राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दिए जाने के लिए प्रयास सकारात्मक प्रयासों की जरूरत है. क्योंकि राष्ट्र बचेगा, तभी सनातन धर्म, दर्शन और संस्कृति भी की जीवंतता बनी रहेगी.
प्रो रांगड़ा ने कहा कि भारत का प्राचीन और वर्तमान साहित्य ज्ञान विज्ञान और अध्यात्म से भरा पड़ा है, जिसका अनुसरण करने के लिए पूरा विश्व लालायित है, ऐसे में साहित्य संवाद की भूमिका प्रासंगिक और उपयोगी हो जाती है. कार्यक्रम में उपस्थित प्रांत प्रचार प्रमुख प्रताप सिंह समयाल ने कहा कि अन्य पारंपरिक मेलों से हटकर पुस्तक मेला लेखकों, प्रकाशकों, पाठकों के महामिलन और परस्पर संवाद का सुनहरा अवसर होता है. साहित्य, लेखक और अध्ययन एवं चिंतन तथा आचरण का विषय होना चाहिए. साहित्य में नैतिक मूल्य तथा व्यक्ति निर्माण की प्रमुखता होनी चाहिए. भारतीय संस्कृति श्रौत परंपरा से संरक्षित रही है, जो आज भी चलन में है. ज्ञान विज्ञान का आधार साहित्य ही है. वर्तमान स्थिति में वैचारिक द्वंद्व चिंता का विषय बनता जा रहा है. हर कोई अपना विमर्श स्थापित करने की होड़ में राष्ट्र की परंपरा और सौहार्द को तोड़ने के लिए अग्रसर है, ऐसे में सत्य इतिहास और सनातन परंपरा के आधार पर राष्ट्र का चिंतन सर्वोपरि होना जरूरी है. सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानव के व्यक्तित्व, व्यवहार और मस्तिष्क को प्रभावित करने लगे हैं, जबकि उसका उपयोग तो मानव कल्याण के लिए होना चाहिए. सूचना तंत्र की आड़ में मीडिया के माध्यम से होने वाला दुष्प्रचार समाज में अनेक विसंगतियां भी पैदा कर रही हैं. कार्यक्रम में मातृवंदना के संपादक डा दयानंद शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किए. साहित्य संवाद में मातृवंदना के अध्यक्ष अजय सूद ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के निर्माण के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में निरंतर प्रयास किया जा रहा है. साहित्य संवाद में शिमला के अनेक बुद्धिजीवियों, लेखकों, साहित्यकारों ने भाग लिया.