मधुबनी: स्थानीय तिलक चौक स्थित केंद्रीय पुस्तकालय के सभागार में मासिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन हुआ. इसकी अध्यक्षता कवि ऋषि देव सिंह ने की. डा विनय विश्वबंधु ने प्रस्तुतियों की समीक्षा की, तो साहित्यकार रेवती रमण झा ने संचालन किया. गोष्ठी की शुरुआत कवि-गीतकार सुभाष चंद्र झा सिनेही की प्रस्तुति ‘कोनहूं साहित्यक प्राण गीत…‘ साहित्य को समर्पित रचना से हुई. दयाशंकर मिथिलांचली ने पढ़ा, ‘मैं मिट्टी से बोल रहा हूं, मुझमें तेरी राख पड़ी है…‘ वेदानंद साह की प्रेरणादायी लघुकथा भी खूब सराही गई. ज्योति रमण झा ने पढ़ा, ‘गैर तो गैर थे हमने अपनों को गैर बनते देखा…‘ तो उदय जायसवाल ने ‘हर दिन हर दिवस क्या हर पल क्षण है मदर्सडे…‘ सुनाकर खूब वाहवाही लूटी. डा विजय शंकर पासवान ने मातृभूमि को समर्पित ‘सत्याग्रह का मोल नहीं कुछ, अनुभव करती काली मिट्टी… ‘रचना सुनाई. भोलानंद झा ने ‘मृत्यु का आर्डर होने पर क्या तुम सोचते हो आध्यात्मिक….‘ रचना सुनाकर सबको सोचने के लिए विवश कर दिया.
संस्था के अध्यक्ष पूर्व प्राचार्य कवि प्रो शुभ कुमार वर्णवाल ने ‘देशक नागरिक भोट गिराबी महापर्व मतदान में…‘ एवं डा विनय विश्वबंधु ने ‘आबि गेल चुनावक समय…‘ मतदान को प्रेरित करने वाली समसामयिक रचना सुनाकर गोष्ठी को महत्त्वपूर्ण बना दिया. कवि ऋषि देव सिंह ने ‘चिंताक विषय थिक कालाधन…‘ कालाधन पर चोट करती रचना सुनाई. रेवती रमण झा ने मजदूर दिवस पर देश के श्रमिकों को समर्पित रचना ‘ओ पढ़ए लगलाह…‘ कविता सुनाई. कथाकार चण्डेश्वर खां की लघुकथा ‘भोट घाव करे‘ और दयानंद झा ने ‘खोजा खूब मगर नहीं पाया कौन है अपना कौन पराया…‘ जैसी भावपूर्ण रचना सुनाई. अध्यक्षीय उद्बोधन में ऋषि देव सिंह ने कहा कि मधुबनी साहित्यिक साधना की स्थली है. उदय जायसवाल ने कहा कि वर्तमान में लोकतंत्र के महापर्व में हम सभी साहित्यकारों की यह जिम्मेदारी है कि अपने परिवार के साथ वोट तो डालें साथ ही आस-पड़ोस के लोगों को भी मतदान के लिए प्रेरित करें. धन्यवाद ज्ञापन वेदानंद साह ने किया.