नई दिल्ली: राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन को यूनेस्को के ‘मेमोरी आफ द वर्ल्ड’ एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर में शामिल किया गया है. यह भारत के लिए एक गौरव का क्षण है, जिससे देश की समृद्ध साहित्यिक विरासत और सांस्कृतिक विरासत की पुष्टि होती है. यह वैश्विक सांस्कृतिक संरक्षण की दिशा में हो रहे प्रयासों में एक कदम आगे बढ़ने का प्रतीक है, जो हमारी साझा मानवता को आकार देने वाली विविध कथाओं और कलात्मक अभिव्यक्तियों को पहचानने और सुरक्षित रखने के महत्व पर प्रकाश डालता है. ‘रामचरितमानस’, ‘पंचतंत्र’ और ‘सहृदयालोक-लोकन’ ऐसी कालजयी रचनाएं हैं जिन्होंने भारतीय साहित्य और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया है और देश के नैतिक ताने-बाने, कलात्मक अभिव्यक्तियों को आकार दिया है. इन साहित्यिक कृतियों ने समय और स्थान से परे जाकर भारत के भीतर और बाहर दोनों जगह पाठकों और कलाकारों पर एक अमिट छाप छोड़ी है. उल्लेखनीय है कि ‘सहृदयालोक-लोकन’, ‘पंचतंत्र’ और ‘रामचरितमानस’ की रचना क्रमशः पं आचार्य आनंदवर्धन, विष्णु शर्मा और गोस्वामी तुलसीदास ने की थी.
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ‘आईजीएनसीए’ ने मेमोरी आफ द वर्ल्ड कमेटी फार एशिया एंड द पैसिफिक की 10वीं बैठक के दौरान एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. उलानबटार में हुई इस सभा में सदस्य देशों के 38 प्रतिनिधि, 40 पर्यवेक्षकों और नामांकित व्यक्तियों के साथ एकत्र हुए. तीन भारतीय नामांकनों की वकालत करते हुए आईजीएनसीए ने ‘यूनेस्को की मेमोरी आफ द वर्ल्ड एशिया-पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में उनका स्थान सुनिश्चित किया. आईजीएनसीए में कला निधि प्रभाग के डीन-प्रशासन और विभाग प्रमुख प्रोफेसर रमेश चंद्र गौड़ ने भारत से इन तीन प्रविष्टियों- राम चरित मानस, पंचतंत्र और सहृदयालोक-लोकन को सफलतापूर्वक प्रस्तुत किया. आईजीएनसीए ने 2008 पहली बार इस क्षेत्रीय रजिस्टर में नामांकन जमा किया है. गहन विचार-विमर्श से गुजरने, रजिस्टर उपसमिति से सिफारिशें प्राप्त करने और बाद में सदस्य देशों के प्रतिनिधियों द्वारा मतदान के बाद, सभी तीन महत्त्वपूर्ण भारतीय प्रविष्टियों को इस रजिस्टर में शामिल किया गया है.