बेंगलुरु: स्थानीय जैन विश्वविद्यालय परिसर में ‘हमारा समय व कविता की जरूरत‘ विषय पर एक संगोष्ठी और पुस्तक विमोचन कार्यक्रम हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में कवि और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीप्रकाश शुक्ल ने शिरकत की. यह कार्यक्रम नगर की ‘शब्द‘ संस्था द्वारा आयोजित हुआ था. पुस्तक विमोचन के साथ परिचर्चा सह काव्य पाठ का आयोजन भी हुआ. ‘समय व कविता की जरूरत‘ पर बात करते हुए प्रोफेसर शुक्ल ने कहा कि समय लौट के नहीं आता लेकिन कविता बार-बार लौट कर आती है. समय के पास केवल उदास अतीत होता है, लेकिन कविता के पास हमेशा एक समृद्ध अतीत होता है. कविता की ताकत ही यही है और यही इसकी जरूरत है. यह आत्म को सामाजिक व समाज की आत्मीय बनाती है.
संगोष्ठी में कविता की जरूरत पर बात तो हुई ही, करीब 3 दर्जन लोगों ने कविता पाठ भी किया. कार्यक्रम में कवि अनिल विभाकर, कथाकार सुधा अरोड़ा, कहानीकार भालचंद्र जोशी, कवि विनोद कुमार श्रीवास्तव, कवि व अनुवादक उषा रानी राव भी उपस्थित हुए. इस बैठक में यह विचार उभरा कि बेंगलूरु में धीरे-धीरे पुरानी पीढ़ी के लोग अपने बच्चों के साथ बसते जा रहे हैं जिनको लेकर एक सार्थक साहित्यिक पहल की जानी चाहिए और शब्द संस्था के माध्यम से वह हो भी रहा है. विस्थापित मानस भी कई बार एक नये परिसर का निर्माता होता है. अंत में अतिथि का अभिनंदन मैसूर पेटा से किया गया, जो कन्नड़ संस्कृति के बीच शक्ति व कुलीनता का प्रतीक है. कवि और अनुवादक श्रीनारायण समीर की सक्रिय उपस्थिति थी.