नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की जयंती के अवसर पर ‘रवींद्रनाथ ठाकुर: प्रकृति, पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण‘ विषय पर साहित्य मंच कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता अंग्रेजी की प्रख्यात लेखिका मालाश्री लाल ने की और हिंदी के प्रयाग शुक्ल, संस्कृत के अजय कुमार मिश्र एवं उर्दू के शहजाद अंजुम ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया. आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि रवींद्रनाथ ठाकुर का बीसवीं शताब्दी के सांस्कृतिक परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव है. उनकी कविताएं, जो कि प्रकृति के बेहद निकट रही हैं, ने उन्हें विश्वव्यापी पहचान दिलाई. प्रख्यात हिंदी कवि, लेखक और अनुवादक प्रयाग शुक्ल ने कहा कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने प्रकृति के बहाने पूरी परम सत्ता को विश्लेषित किया है. उन्होंने केवल कविताओं में ही नहीं बल्कि अपने उपन्यास, नाटक, चित्रकला आदि में भी प्रकृति के अनेकों रूप उभारे हैं. आज हम प्रकृति के बिना असहज महसूस कर रहे हैं.
अजय कुमार मिश्र का कहना था कि रवींद्रनाथ ठाकुर स्वच्छंदतावाद को भारतीय संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं और मानव के साथ प्रकृति के बहुआयामी संबंधों को चित्रित करते हैं. प्रकृति के प्रति उनके अमूल्य योगदान को व्यापक रूप से समझने की जरूरत है. प्रख्यात उर्दू लेखक शहजाद अंजुम ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया में रवींद्रनाथ ठाकुर की तेरह पुस्तकों के उर्दू अनुवाद के दौरान हुए अनुभवों के आधार पर अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि प्रकृति के साथ रहते हुए ही रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने लेखन को अंजाम दिया और उसके प्रभाव उनके लेखन पर स्पष्टता महसूस किए जा सकते हैं. अंत में कार्यक्रम की अध्यक्ष मालाश्री लाल ने कहा कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने प्रकृति के संबंध में जो कुछ लिखा-पढ़ा, रचा वह आज भी बेहद प्रासंगिक हैं. उन्होंने केवल प्रकृति पर लिखा ही नहीं बल्कि उसे अपने जीवन में भी उतारा. शांति निकेतन और श्री निकेतन का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि रवींद्रनाथ ठाकुर ने इस सभी की परिकल्पना छात्रों को प्रकृति के नजदीक लाने के लिए ही की थी.