वाराणसी: “रचना शर्मा की कविताएं उजालों की अभ्यर्थना का संगीत हैं. संघर्ष से विकल मन में चट्टान सा संकल्प लिये ये कविताएं निरंतर गति की ओर अग्रसर होने का संदेश दे रही हैं और अपने समय की विसंगतियों को बखूबी उकेर रही हैं.” यह बात स्थानीय नागरी नाटक मंडली के ट्रस्ट क्लब सभागार में प्रोफेसर रचना शर्मा के कविता संग्रह ‘मेरे फूल मेरी टहनियां‘ के लोकार्पण और चर्चा अवसर पर डाक्टर मुक्ता ने कहीं. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि सहज बिंब और प्रवाहमयी भाषा की दृष्टि से वे अपने काव्य अनुभव को नए मुहावरे और संवेदना के साथ व्यक्त कर रही हैं. स्त्री विमर्श के आईने में और मनुष्य की नियति को पहचानने में अचूक रचना शर्मा की कविताओं को स्त्री संवेदना का नया पाठ करार देते हुए देश के आध्यात्मिक चिंतक, कवि, फिल्मकार, निर्देशक और सार्वजनिक वक्ता स्वामी ओमा द क ने कहा कि रचना शर्मा की कविताओं में पूरी स्त्री जाति की वेदना और स्त्री संवेदना झलकती है. उन्होंने कहा कि जिस समाज में स्त्री के सामने आज भी अनेक अवरोधक हैं पुरुष वर्चस्व और सामाजिक प्रतारणा इत्यादि हैं, इसका अर्थ है कि स्त्री आज भी स्वतंत्रता के अमृत काल के बावजूद आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्र नहीं हुई है. रचना शर्मा जैसी बौद्धिक स्त्रियां स्त्री संसार में स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की अलख जगा रही हैं, यह बहुत अच्छी बात है. अक ने रचना शर्मा की कविताओं को समूचे स्त्री संसार की आवाज बताया और कहा कि जीवन भर विष और अमृत के खेल का शिकार होती रही स्त्री जिस तरह बार-बार मर कर पुनर्जन्म की आकांक्षा रखती है, उसे पढ़ कर गालिब याद आते हैं जो पुनर्जन्म में विश्वास न रखते हुए भी लगभग ऐसी ही बात कहते हैं. उन्होंने ‘मेरे फूल मेरी टहनियां‘ शीर्षक कविता का पाठ करते हुए उसे प्रकृति की पुकार बताया और कहा कि मीमांसाकारों ने जैसे स्त्री की पृथ्वी से तुलना की है, उसी पृथ्वी और स्त्री की पीड़ा का बयान और इच्छा की अभिव्यक्ति रचना शर्मा की कविताएं मार्मिक रूप से करती हैं.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यापक डा अशोक कुमार ज्योति ने कहा कि ‘मेरे फूल मेरी टहनियां‘ काव्यकृति में जो भाव-शाखाएं और शब्द-पुष्प हैं, वे जीवन और जगत् के विविध रंगों से आपूरित हैं. इसमें प्रेम के संयोग और वियोग शृंगार के उल्लासमय रंग हैं तो प्रेम में पगी स्त्री-मन के समर्पण का अनूठा रंग भी है. इसमें स्त्री-स्वातंत्र्य और सह-अस्तित्व के चिंतन के गवाक्ष हैं. इसमें मनुष्यता की प्रतिस्थापना के समभाव भी हैं तो आदर्श परिवेश और नैतिक मूल्यों की तलाश भी. इसमें जीवन और पर्यावरण की शुचिता तथा स्वच्छता के चिंतन-बिंदु हैं. इसमें सपनों को शिखर तक ले जाने का मार्ग-संधान है और है साधना की शुभ्रता तथा प्रेम की सरिता से नेह-रस का वितान फैलाते हुए जीवन की मृदुता का उज्ज्वल प्रसार. इसमें पिता के त्याग की महिमा का बखान भी है. वहीं दूसरी ओर, इसमें आधुनिक विश्व की अति चतुर नारियों के बदरंग रूप भी हैं, जो षड्यंत्रकारिणी है, जो घृणा से भरी हैं और जिनका मन संकुचित है; जिनका पराग झड़ गया है और जो राग-अनुराग से परे हैं. ऐसे अनेक चिंतनशील भावों से भरी यह कविता-पुस्तक मानवता की ‘नमी‘ में सदव्यवहार के बीज बोती हुई सामंजस्य की फसल उपजाने की कृषि-संस्कृति का ऋषि-वाक है. विशिष्ट अतिथि डा भावना शेखर ने कहा कि मेरे फूल मेरी टहनियां की विविध वर्णी कविताओं में सबसे चटख रंग स्त्री विमर्श का है. इसे मध्यवर्गीय स्त्री की वेदना का दस्तावेज कहा जा सकता है. अधिकांश कविताएं बार-बार स्त्री के स्वप्न और पुरुष की छलना की बात करती हैं. स्त्री के सपने सतरंगी आसमान की उड़ान भरना चाहते हैं पर पुरुष की छलना उन्हें खुरदरे धरातल पर लाकर पटक देती है. अपनों की निष्ठुरता, समाज की बंदिशें और पुरुष का छल स्त्री को पग पग पर तोड़ता है, उसे एकाकीपन के सन्नाटे में धकेलता है. उन्होंने कहा कि प्रेम में निर्वासित स्त्री असह्य जो पीड़ा भोगती है उसकी अतृप्त कामनाओं और अनसुनी व्यथाओं का माउथपीस है यह काव्य. किंतु तमाम दुश्वारियों और दुविधाओं के बावजूद स्त्री उम्मीद और विश्वास की उंगली थामे चलती है और आधी आबादी को आंसू पोंछ कर मूव आन करने की दिशा भी दिखाती है.
आलोचक और भाषाविद डा ओम निश्चल ने गए तीन दशकों से लिख रही प्रो रचना शर्मा के संग्रह ‘मेरे फूल मेरी टहनियां‘ को वर्तमान का एक महत्त्वपूर्ण संग्रह बताया और कहा कि उनकी लेखनी में उत्तरोत्तर निखार आया है. कविता जिस कथ्य और संवेदना के माध्यम से लोक तक पहुंचती है, उससे न्याय करता है. कवि का न्याय संपूर्ण समाज के हित में होता है. वह निज और सामाजिक के भेद को भुला कर ब्रह्मांडव्यापी जुड़ा कवि ही कविता के साथ-साथ लोक से भी न्याय करता है. कवि का न्याय संपूर्ण समाज के हित में होता है. वह निज और सामाजिक के भेद को भुला कर ब्रह्मांडव्यापी मानवीय संवेदना का विन्यास रचता है. कवि की बगिया में निरंतर पल्लव, पत्ते, टहनियाँ, फूल विकास पाते रहते हैं. कवि का काम जीवनानुभव, प्रकृति और दृश्य-दृश्यान्तर में व्याप्त उन तत्त्वों की खोज करना होता है तथा उसे अपनी भाषा व शैली में व्यक्त करना होता है जिससे सृष्टि को नया अर्थ मिले, शब्द को नए विचार मिलें. रचना शर्मा की कविता उत्तरोत्तर परिष्कृति की कविता है. उन्होंने इसे स्त्री जागरूकता का भाष्य करार देते क्या कहा कि इन कविताओं में स्त्री अपनी चेतना के लिए गिड़गिड़ाती नही, बल्कि प्रतिकूल हालात से लोहा लेती है. उन्होंने उनकी इन पंक्तियों को उद्धृत किया कि…“एक विचार के लिए छोड़ सकती हूं/ अहंकार की सारी जमा पूंजी/ एक आदर्श के लिए जी सकती हूं /प्रतिकूलताओं के बीच भी.” इस अवसर पर प्रो सुधा पांडेय, दिनेश चंद्र और डा श्रद्धानंद ने भी अपने विचार व्यक्त किए और प्रो रचना शर्मा को उन की बेहतरीन कविताओं के लिए बधाई दी. प्रारंभ में प्रो रचना शर्मा ने इस संग्रह से सपने, शिनाख्त, नदी अब मौन है, पिता, तट का मौन, गांव स्त्री होना, कुम्हार का ऋण, बन जाए प्रबाल, सनद रहे, स्वयं को देती है मुखाग्नि, गुनगुनाने है प्रेम गीत आदि कुछ कविताएं सुनाई और अपनी रचनाओं की भावभूमि से अवगत कराया. समारोह में आलोक विमल, मंजरी पांडेय, संगीता श्रीवास्तव, वत्सला, सौम्या शर्मा, गीता रानी, शुभलक्ष्मी, कमलेश कुमार तिवारी, सुरेंद्र बाजपेई, डा वीपी तिवारी, सविता सौरभ, डा शांति स्वरूप सिन्हा, अत्रि भारद्वाज और डा शशिकला पांडेय तथा नगर के अनेक संस्कृतिकर्मी, पत्रकार और अध्यापकगण उपस्थित थे. सर्वभाषा ट्रस्ट की ओर से आयोजित इस समारोह की शुरुआत सरस्वती वंदना और अतिथियों के स्वागत से हुई. कार्यक्रम का संचालन लेखक नवल किशोर गुप्ता ने किया. आलोक विमल ने धन्यवाद ज्ञापित किया.