नई दिल्ली: इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पद्मेश गुप्त की वाणी प्रकाशन समूह से प्रकाशित तीन पुस्तकों का लोकार्पण और परिचर्चा हुई, जिसमें प्रो अशोक चक्रधर, जितेन्द्र श्रीवास्तव, लेफ्टिनेंट जनरल विवेक कश्यप, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, अनिल जोशी, पाल ग्युस्टेफ्सन, तितिक्षा और अरुण माहेश्वरी ने अपने विचार प्रकट किए. चक्रधर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि पद्मेश एक मुहब्बत के बुलबुले से, नाज़ुक से, कपास से, व्यक्तित्व हैं. जी करता है कि हज़ारों बांहों में भर लें और इनका जो अपनापन है उसकी सुगन्ध में जियें. मैं पद्मेश से व्यक्तिगत नाते का जुड़ाव भी महसूस करता हूं. इतना कि इनकी आत्मा का किरायेदार हो गया हूं. पढ़ते-पढ़ते जीवन के अनुभवों ने पद्मेश को कवि बनाया है. इन जीवनानुभवों से सौन्दर्यानुभूति को बदलते हुये अपना रास्ता निर्मित किया है और उनका रास्ता इतना प्रामाणिक है कि वह ईमानदार हैं. लेखन में उनके निजी अनुभव हैं. राहुल देव ने कहा कि पद्मेश लखनऊ की एक विभूति हैं. उन्होंने लखनऊ का मान बढ़ाया है. वह मूलत: कवि हैं गद्य उनके लेखन में बाद में आता है. उनकी कविताएं विलक्षण हैं. सरल शब्दों और विचारों के माध्यम से अन्त: तक जाने वाला जो उनका छन्द है वह बहुत प्रभावशाली है. कविताओं में उनकी चुनौतियां, सफलताएं दिखती हैं. ‘डेड एंड‘ की कहानी ‘कब तक‘ आज के माहौल में बहुत प्रासंगिक है. भारत के विभाजन और आज के दौर में भी जो विसंगतियां हैं उसके संदर्भ में बहुत महत्त्वपूर्ण है. इसलिए इसको दर्ज किया जाना चाहिए.
प्रो जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि पद्मेश की कविताओं को पढ़ते हुए लगता है कि ये सरलमना कवि की कविताएं है लेकिन सरल कविताएं नहीं हैं. ‘तुम नज़र आये‘ कविता का आंशिक पाठ करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक पल की कविता है लेकिन सीमित अर्थ की नहीं. प्रेम के अर्थ में यह सांस्कृतिक यात्रा है. यह कविता बताती है कि कवि के मन का लोकेल तो भारत है. लेकिन कवि का भौतिक लोकेल यूरोप में है. यह कविता समय के साथ हुई एक विश्वसनीय सांस्कृतिक यात्रा की तरह यह प्रेम कविता हमारे सामने आती है. छोटी-छोटी भावप्रवण कविताएं हैं. मन की त्वचा को स्पर्श करने वाली कविताएं हैं. लेफ़्टिनेंट जनरल एवं कवि विवेक कश्यप ने कहा कि पद्मेश की कहानियां बहुत अच्छी हैं. मैंने पुस्तक एक बार में पढ़ ली. इन कहानियों में लोगों के भावों की झलक मिलती है. कहानियों में मानवीय भावनाओं का सम्बन्ध है. कविताओं में प्रेम शेक्सपियर ब्रैंड की तरह दिखता है. प्रेम की परिभाषा और उसका स्वरूप दिखता है. उनकी कविताएं वर्तमान में जीने की जिज्ञासाओं को दिखाती कविताएं है. पद्मेश की यात्रा आनन्दमयी और अनिल जोशी ने कहा कि पद्मेश गुप्त ने हिंदी के कवियों की अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाने में बहुत योगदान दिया. तितिक्षा ने पद्मेश के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. स्वयं लेखक डा पद्मेश गुप्त ने कहा कि विश्व के लोगों में हिंदी साहित्य के प्रति जिज्ञासा है. लेकिन हमें इसको लेकर कुछ करना चाहिए. उन्होंने कहा कि मेरी दृष्टि में प्रवासी लेखन बहुत मासूम और मौलिक है. प्रवासी लेखन का कार्य जोर-शोर से हो रहा है. प्रवासी लेखकों ने बहुत संघर्ष किया है हिंदी साहित्य की मुख्यधारा में आने के लिये. प्रवासी लेखन ने हिंदी साहित्य और उसकी वैश्विकता को बढ़ाने में बहुत योगदान दिया है. संचालन अदिति माहेश्वरी-गोयल ने किया.