मुरादाबाद: मंडल में साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से रामगंगा विहार स्थित एमआईटी के सभागार में अंग्रेजी एवं हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार डा आरसी शुक्ल की दो काव्य कृतियों ‘न तुम पुण्य थे न मैं पाप था‘ और ‘…लेकिन तुम अमृता नहीं बन पाईं‘ तथा डा राहुल की कृति ‘समकालीन हिंदी कविता और राजेश चन्द्र शुक्ल‘ का विमोचन संपन्न हुआ. इस अवसर पर डा ओम निश्चल, डा राहुल और केशव मोहन पाण्डेय को श्रेष्ठ साहित्य साधक सम्मान 2024 से सम्मानित भी किया गया. संयोजक डा मनोज रस्तोगी ने संस्था की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला. इस अवसर पर सर्व भाषा ट्रस्ट प्रकाशन की ओर से पुस्तक प्रदर्शनी भी लगाई गई. समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्वलन एवं डा पूनम बंसल द्वारा मां सरस्वती की वंदना से हुआ. प्रथम सत्र की अध्यक्षता एमआईटी के चेयरमैन सुधीर गुप्ता एडवोकेट ने की. उन्होंने कहा कि डा शुक्ल की रचनाओं के केंद्र में अध्यात्म और दर्शन का समावेश देखने को मिलता है. दूसरे सत्र की अध्यक्षता दयानंद आर्य कन्या महा विद्यालय के प्रबंधक उमा कांत गुप्ता ने की. उन्होंने कहा कि शुक्ल जी के साहित्य में संवेदनाओं का दर्शन स्पष्ट रूप से होता है. मुख्य अभ्यागत डा ओम निश्चल का कहना था कि आरसी शुक्ल की कविता मितभाषी नहीं है, वह विस्तारवादी है, भाग्यवादी है. वह सांसारिकता के गान में निमग्न लगती है. उसके भीतर कथोपकथन हैं, संवाद हैं, एकालाप है, जीवन, समाज, संसार, स्वार्थ, प्रेम और विरक्ति सब कुछ का अवगाहन है. डा राहुल ने कहा कि डा शुक्ल की कविताओं में कलावादी रुझान है तो सामाजिक चेतना भी है. बौद्धिकता है तो नव-स्वच्छन्दवाद भी है. इन प्रवृत्तियों के बीच जीवन का संघर्ष है, जद्दोजहद है, उठा-पटक है और इन सबसे परे एक आत्मिक दृष्टि और संवेदना है-प्रेम और सौन्दर्य की अनुभूति का स्वरूप लिए.
अंतर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच के अध्यक्ष डा महेश दिवाकर ने कहा कि वे न केवल हिंदी बल्कि अंग्रेजी के भी एक समर्थ कवि हैं. उनकी रचनाओं में स्त्री का मनोवैज्ञानिक यथार्थ परिलक्षित होता है. केशव मोहन पाण्डेय का कहना था कि डा शुक्ल समकालीन कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं. उनकी रचनाओं को किसी वाद की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता. वे जीवन की सहज अनुभूतियां हैं. राजीव सक्सेना ने कहा कि डा शुक्ल ने अपनी कविताओं में अपने समय और समाज का यथार्थ चित्रण किया है. वे कविता में यथार्थ की खोज करते हैं. इसके बरक्स वे प्रेम की व्यापकता के भी कवि हैं. स्वदेश भटनागर ने कहा कि उनकी कविताएं यथार्थ का सिर्फ सामाजिक ,राजनीतिक और आर्थिक पहलू ही नहीं देखती, बल्कि इनके बीच एक आत्मिक आध्यात्मिक यथार्थ की जगह को परिभाषित भी करती हैं. उनकी कविता जीवन, जीवनमूल्यों, और कविता की उपस्थिति की ताकत में गहरा भरोसा करती हैं. डा सुधीर अरोरा ने कहा कि शुक्ल की कविताएं यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करती हुई जीवन के विभिन्न आयामों से परिचय कराकर भाव और विचारों का संगम के साथ अनुभूति – अभिव्यक्ति की लय से पाठकों के हृदय में अपना निश्चित स्थान सरलता से बना लेती हैं. राजीव प्रखर ने कहा कि डा शुक्ल एक ऐसे अद्भुत रचनाकार हैं, जिन्हें हम जितना पढ़ते व आत्मसात् करते जाएंगे, उतना ही जीवन की वास्तविकताओं से हमारा साक्षात्कार होता जाएगा. इस अवसर पर डा आरसी शुक्ल ने अपनी कई कविताएं प्रस्तुत की. मयंक शर्मा ने उनका गीत प्रस्तुत किया. योगेंद्र कुमार, विवेक निर्मल, फक्कड़ मुरादाबादी और राम दत्त द्विवेदी ने उनकी साहित्य सृजन यात्रा पर प्रकाश डाला. संयोजक डा मनोज रस्तोगी के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य रूप से मीनाक्षी ठाकुर, शिखा रस्तोगी, अभिव्यक्ति सिन्हा, श्रीकृष्ण शुक्ल,वीरेंद्र सिंह बृजवासी,काले सिंह साल्टा, मनोज मनु, अशोक विद्रोही, अशोक विश्नोई, राशिद हुसैन, हेमा तिवारी भट्ट, धवल दीक्षित, मौ. हनीफ, डा राकेश चक्र, उदय प्रकाश उदय, ज़हीर राही, डा कृष्ण कुमार नाज़, राम सिंह निशंक, रघुराज सिंह निश्चल, पूजा राणा, विपिन विश्नोई, अशोक बाबा आदि साहित्य प्रेमी उपस्थित रहे. आभार योगेंद्र कुमार ने किया.