नई दिल्ली: याद तुम्हारी जैसे कोई, कंचन-कलश भरे. जैसे कोई किरन अकेली, पर्वत पार करे…. जैसी कालजयी पंक्तियों से हिंदी की नवगीत परंपरा को संजोने और संवारने वाले वरिष्ठ गीतकार माहेश्वर तिवारी नहीं रहे. यश भारती सम्मान से सम्मानित तिवारी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. मुरादाबाद जो सदियों से पीतल के कारण जाना जाता रहा, वह लंबे समय से तिवारी की वहां उपस्थिति और गीतों के लिए भी जाना जाने लगा. इसीलिए उनके निधन पर देश भर में नवगीत से जुड़े कवियों, साहित्यकारों ने दुख जताया. तिवारी के निधन की सूचना मिलते ही गौर ग्रेसियस स्थित उनके आवास पर बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष डा विशेष गुप्ता, नवगीतकार योगेंद्र वर्मा, कृष्ण कुमार नाज, डा उन्मेश सिन्हा, मनोज रस्तोगी, जिया जमीर, काव्य सौरभ जैमिनी, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट जैसे कई साहित्यकार पहुंचे और उन्हें श्रद्धांजलि दी.
मुरादाबाद में आदर्श कला संगम ने भी एक बैठक कर तिवारी के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की. डा प्रदीप शर्मा ने उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा माहेश्वर तिवारी सादा जीवन उच्च विचार के पोषक उच्च कोटि के कवि थे. कवि होने के साथ-साथ वह समाज सेवा में भी सक्रिय थे. इस श्रद्धांजलि सभा में राजदीप शर्मा, अंकित कौशिक, जीवन लता शर्मा, सतीश कुमार, निलय कौशिक आदि उपस्थित थे. याद रहे कि 22 जुलाई, 1939 को उत्तर प्रदेश के बस्ती में जन्मे माहेश्वर तिवारी गीत, नवगीत, जनगीत की दुनिया में अपना विशिष्ट स्थान रखते थे. हिंदी साहित्य में उनके गीतों को जानने वाला एक बड़ा श्रोता और पाठकवर्ग है. उनकी प्रमुख कृतियों में ‘हरसिंगार कोई तो हो‘, ‘नदी का अकेलापन‘, ‘सच की कोई शर्त नहीं‘ और ‘फूल आए हैं कनेरों में‘ ने काफी सुर्खियां बंटोरी. उन्होंने गीत को नए बिम्बों, नए प्रतीकों और यथार्थवादी आग्रहों के साथ जोड़ा और उसके भीतरी लालित्य की भी रक्षा की.