नई दिल्ली: डा राम मनोहर लोहिया एक वैचारिक योद्धा थे. उनका मानना था कि मैं जो सोचता हूं वह धरातल पर भी उसी रूप में आना चाहिए. उन्होंने अपने समय के हर जरूरी सवाल पर मौलिक ढंग से विचार किया. सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने के लिए उन्होंने जो सिद्धांत दिए वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. यह बातें स्थानीय इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘लोहिया के सपनों का भारत‘ पुस्तक के लोकार्पण के दौरान वक्ताओं ने कही. अशोक पंकज की यह पुस्तक लोकभारती प्रकाशन से आई है. पुस्तक के लेखक अशोक पंकज ने कहा कि ‘लोहिया के सपनों का भारत‘ पुस्तक लिखने का ख्याल लोहिया के विचारों को पढ़कर आया. मुझे लगा कि सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने के बारे में उनके सिद्धांतों को हमने अभी तक सही तरीके से समझा नहीं है. मैंने कोशिश की है कि समाजवाद के बारे में लोहिया के जो विचार थे उनको सार रूप में इस पुस्तक में रखूं ताकि अगर कोई उनके समाजवाद को समझना चाहें तो उसे इसका सार मिल सकें.
मुचकुंद दुबे ने देश की आजादी के लिए राम मनोहर लोहिया द्वारा किए गए योगदान को उद्धृत करते हुए कहा कि लोहिया ने देश की आजादी के लिए जो कुछ किया वह बहुत रोमांचक इतिहास है. आज के युवाओं को इसे देखकर आश्चर्य हो सकता है कि कोई ऐसा भी कर सकता है. उन्होंने कहा कि हम देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को जिसमें महिलाएं, दलित और अल्पसंख्यक शामिल हैं, उनको बाहर रखकर कभी सम्पन्नता की कल्पना भी नहीं कर सकते. लोहिया सबको साथ लेकर चलने और सबको प्रतिनिधित्व देने की वकालत करते थे. राम बहादुर राय ने कहा कि डा लोहिया एक महापुरुष हैं और रहेंगे. क्योंकि एक महापुरुष वह होता है जिसके विचार हमेशा प्रासंगिक रहते हैं और लोहिया के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं. डा लोहिया एक सच्चे आंदोलनजीवी थे. अगर उनको पता चलता कि कोई समूह अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहा है तो वह जरूर उनका साथ देते थे. इस पुस्तक को पढ़ते समय और डा लोहिया को समझते हुए आप यह पाएंगे कि वे असहमति की आवाज थे. यह पुस्तक सवाल उठाती है कि आखिर लोहिया का सपना क्या था? इसके लिए हमें लोहिया जी को पढ़ना और उनके विचारों को समझना जरूरी है.
प्रो केएल शर्मा ने कहा कि डा लोहिया एक वैचारिक योद्धा थे. वे वास्तविक सामाजिक संरचना के पक्षधर थे. उनका मानना था कि मैं जो सोचता हूं वह धरातल पर भी उसी रूप में आना चाहिए. लोगों में जागरूकता लाने के लिए उन्होंने कई बड़े आंदोलनलनों का नेतृत्व किया. मानववाद पर उन्होंने बहुत जोर दिया. उनका मानना था कि आखिरी व्यक्ति तक लाभ पहुंचना चाहिए. वे कहते थे कि गैर-बराबरी के कई सोपान है, हमारे लिए उनको समझना बहुत जरूरी है. न्याय के सिद्धांत से ही जाति की व्यवस्था पर प्रहार किया जा सकता है. हरिवंश ने राम मनोहर लोहिया के बारे में एक किस्सा सुनाते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की कि लोहिया जी जब विदेश से पढ़ाई करके लौटे तो उनके घरवालों ने उनसे कोई नौकरी या व्यापार करने के लिए कहा तो उन्होंने नौकरी करने से इनकार कर दिया. जब उनके चाचा ने उनसे पूछा कि तुम किस चीज का व्यापार करोगे तो उनका जवाब था- करोड़पतियों के नाश का व्यापार. रघु ठाकुर ने कहा कि लोहिया की चिंताएं वाजिब थी. लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो चीजें काफ़ी बदल गई है.