देवघर: आधुनिक हिंदी के चर्चित साहित्यकार, पत्रकार तथा नई कहानी आंदोलन के ध्वजवाहक निर्मल वर्मा की जयंती पर बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन ने उन्हें याद किया. सम्मेलन के पूर्व प्रवक्ता अजय कुमार ने निर्मल वर्मा की तस्वीर पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा कि निर्मल वर्मा की कृतियां आज भी प्रासंगिक हैं, जो सदैव हमें प्रेरणा देती रहेंगी. वे गंभीरता से भरी आधुनिक कहानियों के यथार्थवादी लेखक थे. ऐसा लेखक जो हिंदी साहित्य, शिक्षा व पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय योगदान के साथ ही हिंदी कहानी में आधुनिक बोध लाने के लिए सदैव साहित्य प्रेमियों के बीच स्मरण किए जाते रहेंगे. यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि उनकी कृतियां आज भी समाज का दर्पण होने के साथ-साथ भारतीय संस्कृति के विविध आयामों का दर्शन कराती हैं.
याद रहे कि निर्मल वर्मा के जीवनकाल में ही उनकी 40 से अधिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी थीं, जिनमें कहानी, उपन्यास, यात्रा-संस्मरण, निबन्ध, पत्र, अनुवाद समेत अनेक विधाओं की पुस्तकें शामिल हैं. निर्मल वर्मा हिंदी के पहले और एकमात्र ऐसे लेखक हैं, जिनका नाम भारत सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए प्रस्तावित किया गया था. उन्होंने लेखन की शुरुआत 1950 के दशक में की थी. उनकी कहानी ‘परिन्दे‘ को हिंदी में नई कहानी की शुरुआत माना जाता है. उन्होंने पहली कहानी सेंट स्टीफंस कालेज दिल्ली में पढ़ने के दौरान ही लिख दी थी. कुछ समय तक उन्होंने पढ़ाया भी था. उन्होंने कई अखबारों के लिए हिंदी पुस्तकों की अंग्रेजी में समीक्षाएं भी लिखी थीं. कम्युनिस्ट पार्टी में काम भी किया था. फिर राज्यसभा में अनुवादक बने. 59 में चेकोस्लोवाकिया गए. वहां आठ वर्ष रहकर कई चेक लेखकों- मिलान कुन्देरा, इवान क्लीना, बासलाम, हर्विल आदि की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया.