लखनऊ: स्थानीय कैफी आजमी एकेडमी में ‘सेतु संवाद‘ में सीमा सिंह की पुस्तक ‘कितनी कम जगहें हैं‘ का विमोचन और पुस्तक चर्चा हुई. चर्चा की शुरुआत सीमा सिंह के लेखकीय वक्तव्य से हुई. सीमा सिंह ने कहा कि कविताओं ने उनके लेखक को जिम्मेदार बनाया. अधिक मानवीय समाज के निर्माण की ओर प्रेरित किया. उसका होना मनुष्य के पक्ष में होना है. उन्होंने कहा कि सत्ताएं आजाद अभिव्यक्ति से डरती हैं. इसीलिए वे उन पर पहरा लगाती हैं. सिंह ने अपने संग्रह से कई कविताओं का पाठ भी किया. इस अवसर पर कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि सीमा सिंह की कविताओं में पुराने कवियों की ध्वनियां हैं. इससे पता चलता है कि इनका अध्ययन गहरा है. ज्ञान से ही कला उपजती है. वैसे कविता भोलेपन से भी लिखी जा सकती है. आलोचना के लिए ज्ञान की जरूरत होती है. उन्होंने सीमा सिंह को पुस्तक के लिए बधाई दी. विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि सीमा सिंह के यहां परम्परा का बोध है, जिसमें गहरा जीवनानुभव है. उनकी कविताओं में यथार्थ भरा पड़ा है. उनकी कविताएं धैर्यपूर्ण विकलता का आख्यान हैं. उन्होंने सीमा सिंह की कई कविताओं की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए उनकी विशेषताओं को रेखांकित किया.
आलोचक नलिन रंजन सिंह ने कहा कि सीमा सिंह की कविताओं का फलक बहुत बड़ा है. उनके यहां मां से जुड़ी कविताएं हैं, तो युगल प्रेम की भी कविताएं हैं. राजनीतिक कविताएं हैं, तो विविध विषयों से जुड़ी कविताएं हैं. सीमा सिंह युद्ध के नहीं प्रेम के पक्ष में खड़ी कवयित्री हैं. वे समय की गहरी पड़ताल करती हैं. सूरज बहादुर थापा ने कहा कि सीमा सिंह के यहां ऐसी विनम्रता है जिसमें दृढ़ता भी है. पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री का दु:ख उनके यहां दिखाई देता है. स्त्री का दुख एक स्त्री ही समझ सकती है. संग्रह में बहुत दृढ़ कविताएं हैं. इसीलिए वे स्त्री विमर्श के दायरे से भी आगे निकल जाती हैं. यह संग्रह वास्तव में सभ्यता समीक्षा है. दूसरे सत्र में सुभाष राय, अनिल त्रिपाठी, नलिन रंजन सिंह, विशाल श्रीवास्तव, प्रीति चौधरी, आभा खरे, ज्ञानप्रकाश चौबे, शालिनी सिंह और इरा श्रीवास्तव का काव्य पाठ हुआ. दोनों सत्रों का संचालन शालिनी सिंह ने किया. इस अवसर पर शहर के तमाम साहित्य प्रेमी, लेखक, छात्र उपस्थित थे.