नई दिल्ली: पढ़ना भी एक कला है. लिखे हुए को समझने के लिए एक नजर होना जरूरी है. अगर आप जिंदगी की नब्ज को अपने लेखन में ला पा रहे हैं तो आपका लिखा हुआ बहुत पढ़ा जाएगा. लेकिन हिंदी का लेखक समाज पाठक की चाहना से बहुत डरा हुआ है. वर्तमान हालात को देखते हुए लेखक के लिए उसका उद्देश्य स्पष्ट होना बहुत जरूरी है कि वह अपने लेखन के जरिए समाज को क्या देना चाहता है. इसलिए हमारी प्रतिबद्धता सबसे पहले अपने लेखन की तरफ होनी चाहिए. एक लेखक को इस बात से नहीं डरना चाहिए कि वह जो लिख रहा है उसे पाठक समाज किस तरह से देखेगा अथवा स्वीकार करेगा या नहीं. ये बातें इंडिया हैबिटेट सेंटर के गुलमोहर सभागार में आयोजित राजकमल प्रकाशन समूह की विचार-बैठकी की मासिक शृंखला ‘सभा‘ की पांचवी कड़ी में ‘हिंदी पाठक को क्या पसंद है‘ विषय पर परिचर्चा के दौरान सामने आईं. इस सभा में हिंदी में लिखने वाले कई लेखक, वक्ताओं ने अपनी राय रखी. परिचर्चा की शुरुआत करते हुए सत्यानन्द निरुपम ने पिछले दस वर्षों की अवधि में पाठकों द्वारा सर्वाधिक पसंद की गई किताबों के बारे में बताया.
विश्व पुस्तक मेला में राजकमल प्रकाशन समूह की ओर से किए गए इस सर्वे में कुल 4528 पाठकों की भागीदारी रही जिसमें ज्यादातर पाठक युवा वर्ग के थे. इसमें स्त्री पाठकों की संख्या 40 फीसदी से अधिक रही. इस सर्वे में शामिल 74 फीसदी पाठकों ने छपी हुई किताबों को अपनी पहली पसंद बताया. विधाओं से जुड़े सवाल पर 39 फीसदी पाठकों ने कथेतर विधा और 37 फीसदी पाठकों ने कथा-साहित्य को पहली पसंद बताया है. वहीं किताबों के चयन से जुड़े सवाल पर 36 फीसदी पाठकों ने विषय के आधार पर और 28 फीसदी पाठकों ने लेखक के नाम के आधार पर किताब चुनने को पहली प्राथमिकता बताया. इसी तरह किताबें खरीदने के लिए 34 फीसदी पाठकों ने सबसे सुविधाजनक माध्यम पुस्तक मेलों को, 31 फीसदी पाठकों ने बुक स्टोर और 29 फीसदी पाठकों ने आनलाइन माध्यमों को बताया है. इससे पता चलता है कि आनलाइन माध्यमों के प्रचार-प्रसार के बावजूद ज्यादातर पाठक किताबों को सामने से देखकर, उन्हें छूकर ही खरीदना पसंद करते हैं. सर्वे में शामिल पाठकों में से 42 फीसदी ने नई किताबों की जानकारी मिलने का माध्यम सोशल मीडिया को बताया है.