नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित छह दिवसीय साहित्योत्सव का अंतिम दिन दिव्यांग लेखकों के नाम रहा. दिव्यांग लेखकों को राष्ट्रव्यापी मंच प्रदान करने के लिए अखिल भारतीय दिव्यांग लेखक सम्मिलन का आयोजन किया गया. वहीं बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि जाग्रत करने के लिए दिल्ली एवं एनसीआर के 850 से ज्यादा बच्चों के लिए कई प्रतियोगिताओं का आयोजन ‘आओ कहानी बुने‘ कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया. इसके अलावा गोपी चंद नारंग के जीवन और कृतित्व पर परिसंवाद, बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक समाज में अनुवाद, भारत की भाषाओं का संरक्षण, भारतीय संदर्भ में पुनर्लेखन/पुनःसृजन के रूप में अनुवाद, भारतीय अंग्रेज़ी लेखन और अनुवाद पर संवाद के अतिरिक्त भारतीय वाचिक महाकाव्य एवं स्वातंत्र्योत्तर भारतीय साहित्य पर चल रही राष्ट्रीय संगोष्ठियों का भी समापन हुआ.
छह दिवसीय इस समारोह को आइंस्टीन वर्ल्ड रिकार्डस दुबई की टीम ने विश्व कीर्तिमान का एक प्रमाण-पत्र भी सौंपा, जिसे साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक, उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा एवं सचिव के श्रीनिवासराव ने ग्रहण किया. प्रमाण-पत्र में छह दिन चले इस साहित्योत्सव के 190 सत्रों में 1100 से अधिक लेखकों के भाग लेने और इसमें 175 से अधिक भाषाओं का प्रतिनिधित्व होने को प्रमाणित किया गया है.
अखिल भारतीय दिव्यांग लेखक सम्मिलन के उद्घाटन सत्र में उद्घाटन वक्तव्य देते हुए प्रख्यात अंग्रेज़ी विद्वान जीजेवी प्रसाद ने कहा कि हम उन जैसे नहीं हैं, लेकिन हमें उनके लिए सजग और स्नेह से कार्य करना होगा. दिव्यांगता जन्मजात नहीं बल्कि कई बार हमारी अपनी अज्ञानता और लापरवाही के कारण हमें प्राप्त होती है. उन्होंने सभी दिव्यांग रचनाकारों से अनुरोध किया कि वह अपनी विशेष क्षमताओं को पहचान कर उन पर काम करें, उन्हें मंज़िल अवश्य प्राप्त होगी. अपने अध्यक्षीय भाषण में साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने विभिन्न क्षेत्रों में दिव्यांगजनों द्वारा पाई गई उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि दिव्यांगजनों को हौसले की ऊर्जा से आगे बढ़ना होगा, तभी वह अपनी मनचाही मंज़िल प्राप्त कर सकेंगे. उद्घाटन सत्र के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि आज 24 भारतीय भाषाओं के दिव्यांग लेखकों को यहां उपस्थित पाकर साहित्य अकादेमी अपने को गर्वित महसूस कर रही है.
साहित्य अकादेमी के पूर्व अध्यक्ष एवं महत्तर सदस्य गोपीचंद नारंग को याद करते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक परिसंवाद का आयोजन किया गया, जिसके मुख्य अतिथि गुलज़ार और नारंग की धर्मपत्नी मनोरमा नारंग थी. गुलजार ने अपने वक्तव्य में कहा कि गोपीचंद नारंग का व्यक्तित्व और कृतित्व उनके हुनर और आलिमियत का खूबसूरत मुजस्समा है. बीज वक्तव्य उर्दू विद्वान निज़ाम सिद्दकी ने और विशिष्ट अतिथि के रूप में सदीकुर्रहमान क़िदवई ने अपना वक्तव्य दिया. अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की. आरंभिक वक्तव्य उर्दू परामर्श मंडल के संयोजक चंद्र भान ख़याल ने दिया.
इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले महत्त्वपूर्ण लेखक और विद्वान थे हरीश नारंग, दामोदर खड़से, अन्विता अब्बी, रीता कोठारी, के इनोक, देबाशीष चटर्जी, उदयनारायण सिंह, मंमग दई, सुकृता पाल कुमार, शाफे किदवई, शमीम तारीक आदि.