नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित साहित्योत्सव के पांचवे दिन 35 सत्रों में कई जानेमाने लेखकों एवं विद्वानों ने भाग लिया. इस दिन लोकप्रिय चेतना में रामकथा विषय पर दो सत्र आयोजित किए गए. प्रथम सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने की और इसमें आनंद नीलकांतन, हिरोयुकी सातो, इंदुशेखर तत्पुरुष एवं युगल जोशी ने भाग लिया. स्वागत भाषण साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने किया. अध्यक्षीय वक्तव्य में अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि राम हमारे अस्तित्व का एक अनिवार्य हिस्सा हैं और हमारे आदर्श हैं. आगे उन्होंने कहा कि राम हमारे लिए भावपुरुष है न कि इतिहास पुरुष. राम हमारी आंतरिक मनोभूमि का हिस्सा हैं. नीलकंठन ने रामायण के अन्य क्षेत्रीय और लोक संस्करणों के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि रामकथा के विभिन्न संस्करणों में परिवर्तन हमारी सामाजिक व्यवस्था के विकास के कारण हुए, जिसका उपयोग समकालीन युग के साथ समायोजित होने के लिए किया गया है. भारतीय महाकाव्यों और पौराणिक साहित्य के जापानी अनुवादक हिरोयुकी सातो ने अन्य दक्षिण एशियाई देशों की विविधताओं पर बात की. उन्होंने कहा कि रामायण मूल्यों और जीवनशैली का प्रतीक है. इंदुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि राम की सनातन चेतना को ही समय-समय पर अलग-अलग संस्कृतियों में दोहराया गया है. राम की लोकप्रियता धर्म के प्रति उनकी आस्था के कारण है. युगल जोशी ने जनता के बीच रामायण की लोकप्रियता के कारणों पर विचार-विमर्श किया. उन्होंने रामायण की उत्पत्ति के संबंध में प्रचलित विभिन्न कहानियों पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने मध्यकालीन युग के भक्ति साहित्य पर रामायण के प्रभाव पर भी बात की.
भारत की सांस्कृतिक विरासत सत्र की अध्यक्षता एसएल भैरप्पा ने की. उन्होंने कहा कि महाभारत सांस्कृतिक मूल्यों का सबसे समृद्ध साहित्यिक कोश है. उन्होंने कुछ महान भारतीय उपन्यासों और उनके दार्शनिक आधारों का उल्लेख किया. नंदकिशोर आचार्य ने भारतीय मूल्य व्यवस्था के स्रोत के बारे में बताया. उन्होंने भारतीय दर्शन और अंतः अस्तित्व, अर्थव्यवस्था और कई अन्य अवधारणा पर भी बात की. आज आयोजित अन्य सत्रों में भारतीय साहित्य में आत्मकथाएं, मीडिया और साहित्य, उत्पीड़ितों का स्वर: दलित साहित्य, भारतीय भाषाओं में विज्ञान कथा साहित्य एवं भारत की सांस्कृतिक विरासत, नैतिकता एवं साहित्य, भारतीय गौरवग्रंथ तथा विश्व साहित्य, भारत का धार्मिक और दार्शनिक साहित्य, भारतीय भाषाओं में तेजी से दमकता कथा साहित्य आदि विषयों पर भी परिसंवाद और चर्चा हुई. इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले महत्त्वपूर्ण लेखक थे मृदुला गर्ग, प्रो पुरुषोत्तम अग्रवाल, शीन काफ निजाम, श्रीराम परिहार, जेरी पिंटो, अब्दुल बिस्मिल्लाह, कपिल तिवारी, महेंद्र कुमार मिश्र, अनंत विजय, मालाश्री लाल, शरणकुमार लिंबाले एवं श्यौराज सिंह बेचैन आदि.