चित्तौड़गढ़: कला, संस्कृति और विरासत के रंगों में डूबा चित्तौड़गढ़ साहित्य उत्सव 2024 सकुशल संपन्न हुआ. युवाओं और स्कूली विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी इस उत्सव का खास आकर्षण रही. तीन दिवसीय इस आयोजन में साहित्य और समाज के ज्वलंत मुद्दों पर जहां बेबाकी से बात हुई वहीं श्रोताओं के लिए खुले सत्रों का आयोजन हुआ. यूथ मूवमेंट आफ राजस्थान ने अफ्रीकी और अमेरिकी गुलाम महिलाओं और भारत में दलित महिलाओं की पीड़ा का तुलनात्मक अध्ययन संवाद रखा. इस विषय पर डा केएस कंग और डा तराना परवीन ने पितृसत्तात्मक सोच के बीच गुलामी मानसिकता और पीड़ा की दास्तां के मार्मिक पहलुओं को दृष्टिगत किया. संचालन शांति सक्सेना ने किया. ‘मीरा और उसकी शायरी का पैगाम‘ सत्र में डा सुशीला लढ्ढा, सर्बत खान, कुलसुम बानो, हरीश तलरेजा, शाइस्ता बानो ने मीरा की रचनाओं के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया.
‘लोक में राजस्थानी साहित्य‘ सत्र में शारदा कृष्णा और रीना मेनारिया में राजस्थानी साहित्य की महत्ता और विशेषताओं को बारीकी से श्रोताओं के समक्ष रखा. सिनेमा ओटीटी व समाज के दृष्टिकोण को लेकर आयोजित सत्र मे बढ़ती तकनीक के साथ मनोरंजन के नाम पर सांस्कृतिक प्रदूषण के सीधे घरों तक की पंहुच को भविष्य की भयावह स्थिति के रूप में इंगित किया गया. अनुवाद से जुड़े सत्र में वरिष्ठ शिक्षाविद डा मुन्नालाल डाकोत ने कहा कि अनुवादक को मूल कृति के लेखक की भावनाओं में स्वयं को ढालते हुए पठनीय सामग्री प्रस्तुत करना एक चुनौती से कम नहीं है. इस सत्र में सहायक आचार्य डा राजेन्द्र सिंघवी से परिचर्चा करते हुए डाकोत ने कहा कि भारतीय पौराणिक इतिहास को वैज्ञानिक प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करने का कार्य विदेशी विद्वानों ने भी किया है. प्रबंध काव्य ‘जनमत का जयघोष‘ पर परिचर्चा में डा शिव मृदुल ने कहा कि उनकी यह रचना जनशक्ति के वंदन से मानव मूल्यों की स्थापना से प्रेरित है. प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की पौराणिक पृष्ठभूमि में सम्पूर्ण कथानक मानव मूल्यों की रक्षार्थ अन्याय के प्रतिकार के लिए खड़ा दिखता है. होलिका को नई अवधारणा के साथ उदात्त महिला चरित्र एवं आदर्श के रूप उजागर करना काव्य की विशेषता रही है. परिचर्चा का संचालन डा रमेश मयंक ने किया.