वाराणसी: आधुनिक खड़ी बोली हिंदी के विकास से जुड़ी नागरी प्रचारिणी सभा तीन दशकों तक निष्क्रिय रहने के बाद एक बार फिर सक्रिय हो गई है. संस्था के आर्यभाषा वाचनालय पर लगभग एक साल से जड़ा ताला कोर्ट के आदेश के बाद खोल दिया गया. हिंदी भाषा और साहित्य के इस विश्वविख्यात पुस्तकालय और संग्रहालय के रखरखाव और सफ़ाई का काम भी तुरंत शुरू हो गया है. आर्यभाषा पुस्तकालय के साथ-साथ नागरीप्रचारिणी सभा के विक्रय, प्रकाशन और अर्थ विभागों के ताले भी लंबी अवधि के बाद खुल गए हैं. विक्रय विभाग में पुस्तकों के विशद संग्रह के स्टाक-मिलान के बाद यहां रखी किताबें जल्द बिक्री के लिए उपलब्ध होंगी. बीते तीन दशकों से हिंदी की यह महान संस्था गतिरोध का शिकार थी और अपनी स्थापना के मूल उद्देश्यों से अंदरूनी कलह की वजह से भटक गई थी. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद जिला प्रशासन द्वारा कराए गए चुनाव के माध्यम से यहां की प्रबंध समिति में बदलाव हुआ, हाईकोर्ट के आदेश पर सभी विभागों को खोला गया और नवनिर्वाचित प्रबंध समिति को कार्य-संचालन का अधिकार मिल गया. वाराणसी में नागरीप्रचारिणी के कार्याधिकारी व्योमेश शुक्ल ने बताया कि जिस खड़ी हिंदी बोली को हम भाषा के तौर पर देखते हैं. उसका मानकीकरण इसी नागरी प्रचारिणी के टकसाल में ठीक वैसे ही जैसे टकसाल में सिक्के बनते हैं, हुआ था. 1893 में 19वीं सदी में भारतेंदु हरिश्चंद्र की मृत्यु के लगभग 8 वर्षों के बाद नागरी प्रचारिणी की शुरुआत हुई. क्योंकि भारतेंदु की मृत्यु के बाद हिंदी के क्षेत्र में जो शून्यकाल था उसको भरने के लिए वाराणसी के इंटरमीडिएट के तीन विद्यार्थियों ने श्याम सुंदर दास, शिवकुमार सिंह और रामनारायण मिश्र ने इस संस्था की शुरुआत की. एक डिबेट क्लब की तरह इसकी एक वाद-विवाद समिति थी.
अंग्रेजों के शासनकाल के दौर में भी 1893 से लेकर 1943 तक 50 सालों के वक्त में नागरीप्रचारिणी सभा ने अप्रत्याशित और असंभव काम करके दिखाया. संस्था ने आर्य भाषा पुस्तकालय का निर्माण किया. हिंदी की पुस्तकों बोलियो का संस्कृत, फ़ारसी, ब्रज, अवधी भाषा का हस्तलिखित भंडार उपस्थित कर दिया. हस्तलिखित पांडुलिपियों और ग्रंथों की खोज का एक अभियान नागरी प्रचारिणी सभा ने चलाया. कचहरी में कामकाज की भाषा हिंदी हो इसको लेकर लाखों लोगों के साथ एक बड़ा आंदोलन इसी संस्था के तत्वाधान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में चला. उन्होंने अंग्रेजी में एक निबंध लिखा था ढाई साल की मेहनत करके जिसका शीर्षक था ‘कोर्ट करेक्टर और नागरी लैंग्वेज‘. उस निबंध के साथ 1,90,000 लोगों के हस्ताक्षर यूपी के जिसे संयुक्त प्रांत भी कहा जाता था गवर्नर को सौपा गया और उसके बाद अंग्रेजी और फारसी के साथ कचहरियों में कामकाज की भाषा हिंदी भी हो गई. बनारस की कचहरी में नागरीप्रचारिणी सभा ने अपने खर्चे पर हिंदी के अर्जी लेखक नियुक्त किए. नागरीप्रचारिणी सभा का शब्दकोश हिंदी शब्द सागर जो 11 खंडों में है वह हिंदी का सबसे प्रामाणिक और सबसे बड़ा शब्दकोश और शायद सबसे पहला कोश भी है.