भोपाल: “कथेतर ने कथा को पीछे छोड़ दिया है, पाठकों में कथेतर को लेकर बहुत जिज्ञासा है. कथेतर में लेखक जीवन के बारे में लिखते हैं.” यह बात वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया ने तीन दिवसीय राष्ट्रीय वनमाली कथा सम्मान समारोह में कही. कथाकार, शिक्षाविद, विचारक जगन्नाथ प्रसाद चौबे ‘वनमाली‘ के रचनात्मक योगदान और स्मृति को समर्पित संस्थान वनमाली सृजन पीठ ने रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय एवं आईसेक्ट पब्लिकेशन के सहयोग से यह समारोह आयोजित किया था. इस दौरान चिंतन, विमर्श, रचना, कविता-कहानी पाठ, संगीत और नाट्य प्रस्तुति हुई. ‘कथेतर का रचना विधान‘ सत्र में साहित्यकार संतोष चौबे ने कहा कि आज के समय को कथेतर का समय माना जाता है, इसलिए वनमाली सम्मान में कथेतर सम्मान को भी शामिल किया गया है. उन्होंने अपनी कथेतर रचना ‘कथा भोपाल‘ का अंश पाठ किया. इसमें कथानक में भोपाल के बनने का इतिहास, वर्तमान परिदृश्य और भविष्य की दृष्टि शामिल है. अध्यक्षता करते हुए ममता कालिया ने निर्मल वर्मा जैसे लेखक और सिटी आफ जाय जैसी किताबों का जिक्र किया.
महेश दर्पण ने कहा कि आज का भूगोल कल का इतिहास होता है, ऐसे में कथेतर जैसी नई विद्या अपने साथ अनंत संभावनाएं लेकर आई है. कबीर संजय ने कहा कि कथेतर आज नए सिरे से लोकप्रिय हो रहा है. कथेतर जीवन है और उसके विविध रूपों में जीवन बिखरा हुआ है. कथा-कहानियों से ही मानव सभ्यता विकसित हुई है. कथेतर साहित्य, विज्ञान, पर्यावरण, प्रकृति के मिलन बिंदु तक मिलाता है जो जीवन की समरसंता का वर्णन करता है. आलोक रंजन ने कहा कि कथा एक धुरी है जिसकी परिधि में बहुत सारी बातें हैं. कथेतर एक नया माध्यम है, जिससे समाज को नए सिरे से देखने और समझने की दिशा मिलती है. कथेतर में प्रमाणिकता तलाश सकते हैं. तार्किकता भी परख सकते हैं. अनिल यादव ने कथेतर के लोकप्रिय होने का कारण बताते हुए कहा कि पिछले तीस सालों में भारत में, विशेष रूप से हिंदी पट्टी में अभूतपूर्व बदलाव हुए हैं जैसे पिछले 1000 साल में भी नहीं हुए हैं. कथेतर लेखन में नयापन लाकर लेखक को तैयार भी करता है. शशांक ने कहा कि कथेतर में एक लय होती है जो एक कहानीकार से दूसरे कहानीकार को अलग पहचान देती है. साथ ही बताया कि हिंदी कहानियों की वजह से कहानियां जीवन जगत की प्रतिलिपियां बनाती हैं.