नई दिल्ली: किताबों के साथ राष्ट्रभक्ति की भावना का भी विस्तार हो, नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला इसका भी गवाह बना. भारतीय सेना के इतिहास और शौर्य से जुड़ी कहानियों और पुस्तकों में पुस्तक-प्रेमियों, विशेषकर युवाओं की पर्याप्त रुचि देखी गई. आयोजकों ने हाईब्रो स्क्राइब पब्लिकेशंस की पुस्तक ‘एक शूरवीर की अमर गाथा‘ पर भी चर्चा आयोजित की. लेखिका शकुंतला अजीत भंडारकर ने अपने पति, शौर्य चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट कर्नल अजीत भंडारकर की शौर्य गाथा को इस पुस्तक में लिखा है. यह पुस्तक अंग्रेजी में पहले से पाठकों के बीच थी. नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में इसके हिंदी संस्करण ‘एक शूरवीर की अमर गाथा‘ का विमोचन किया गया. भंडारकर के त्याग से दूसरे प्रेरणा ले सकें, पुस्तक इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है. इस कार्यक्रम में सेवानिवृत्त कैप्टन रामनाथ मंजेश्वर की पुस्तक ‘शकु- साधारण से, वीर नारी तक…‘ का भी विमोचन किया गया. यह पुस्तक लेखिका शकुंतला अजीत भंडारकर के संघर्षपूर्ण जीवन को बयान करती है. लेखक मंच से ही जाने-माने लेखक तेज प्रताप नारायण की तीन पुस्तकों का भी लोकार्पण हुआ- एक नदी थी सई, बुद्ध होने के मायने, गोली डंडा व होईगा, पेट चीर दिया ब होईगा.
मेले में ही बच्चों में कल्पनाशीलता और जिज्ञासा को विकसित करने और बढ़ाने के लिए डिस्कवरी किड्स ने एक रोचक सत्र का आयोजन किया. इसमें विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों ने मंगलग्रह से आए एक काल्पनिक एलियन का चित्र बनाया. ड्राइंग प्रतियोगिता के बाद कार्टून नेटवर्क के चरित्र ‘राबिन और स्टार फायर‘ ने अपने नृत्य से सभी का मन मोह लिया. सेंटर फार स्पेस साइंस एंड अर्थ हैबिटेबिलिटी, भोपाल ने भी एक रोचक सत्र का आयोजन किया, जिसमें वैज्ञानिक गोपालन श्रीनिवासन ने जेएनयू की रितिका गौड़ के साथ बच्चों को सभी ग्रहों के विभिन्न चंद्रमाओं, उनके गठन, आकार और उसके आस-पास के वातावरण के बारे में बताया. इस दौरान चंद्रयान मिशन और अंतरिक्ष अन्वेषण में चंद्र मिशन के महत्त्व के बारे में भी जानकारी दी गई. बाल मंडप में पराग इनीशिएटिव आफ टाटा ट्रस्ट द्वारा आयोजित सत्र में ‘बहुभाषी भारत-एक जीवंत परंपरा‘ की थीम के अंतर्गत प्रख्यात कथाकार वसुंधरा बहुगुणा ने हिंदी भाषा में तीन कहानियां ‘जोखू का डरावना डर‘, ‘असामो, क्या ये तुम हो?’ और ‘भूतों का रंगमंच‘ सुनाईं. ये मनोरंजक और ज्ञानवर्धक कहानियां माजुली द्वीप के पौराणिक पात्रों पर आधारित थीं जो बच्चों और समाज के बीच उनके बारे में मिथक को तोड़ने का प्रयास करती हैं.