नई दिल्ली: “भारत के पास पारंपरिक ज्ञान का अमूल्य भंडार है. यह ज्ञान दशकों से पारंपरिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होता रहा है. लेकिन अब कई पारंपरिक कौशल खत्म होते जा रहे हैं. यह ज्ञान परंपरा लुप्त होने के कगार पर है.” यह बात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने नई दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में ‘आदि महोत्सव 2024’ का उद्घाटन करते हुए कही. राष्ट्रपति ने कहा कि जिस तरह कई वनस्पतियां और जीव-जंतु विलुप्त हो रहे हैं, उसी तरह पारंपरिक ज्ञान भी हमारी सामूहिक स्मृति से ओझल हो रहा है. हमारा प्रयास यह होना चाहिए कि हम इस अमूल्य खजाने को संचित करें और आज की आवश्यकता के अनुसार इसका उचित उपयोग भी करें. इस प्रयास में प्रौद्योगिकी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. राष्ट्रपति ने कहा कि हमारा देश विविधता से भरा है. लेकिन ‘अनेकता में एकता’ की भावना हमेशा मौजूद रही है. इसी भावना के अनुरूप एक-दूसरे की परंपराओं, खान-पान और भाषा को जानने, समझने और अपनाने का हमारा उत्साह रहा है. एक-दूसरे के प्रति सम्मान की यह भावना हमारी एकता के मूल में है.
आदि महोत्सव में विभिन्न राज्यों की जनजातीय संस्कृति और विरासत का अनूठा संगम देखकर खुश राष्ट्रपति ने कहा कि जैसे-जैसे आधुनिकता आगे बढ़ी, इसने धरती माता और प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाया है. विकास की अंधी दौड़ में इस धारणा को बल देने का माहौल बनाया गया कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना प्रगति संभव नहीं है. लेकिन सच्चाई इसके उलट है. दुनिया भर में जन-जातीय समुदाय सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रह रहे हैं. हमारे जन-जातीय भाई-बहन अपने जीवन के हर पहलू में आसपास के पर्यावरण, पेड़-पौधों और जानवरों का ख्याल रखते रहे हैं. हम उनकी जीवनशैली से प्रेरणा ले सकते हैं. आज जब पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने का प्रयास कर रही है, तब जन-जातीय समुदाय की जीवनशैली और भी अनुकरणीय हो जाती है. राष्ट्रपति ने कहा कि प्रौद्योगिकी ने हमारे जीवन को आसान बना दिया है. यह ठीक नहीं है कि हमारा जन-जातीय समुदाय आधुनिक विकास के लाभ से वंचित रहे. उनके योगदान ने देश के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और वे भविष्य में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते रहेंगे.