पटना: “गीति-साहित्य के अतुल्य कवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री बिहार के ही नहीं, हिंदी साहित्य के विशाल गौरव-स्तम्भ हैं. हिंदी के गीत-साहित्य की चर्चा, उनके बिना सदा अधूरी रहेगी. हिंदी-साहित्य से गीत बेमौत मर गया होता, यदि जानकी जी और नेपाली जैसे कवियों ने इसमें प्राण न फूंके होते. वे संस्कृत और हिंदी के मूर्द्धन्य विद्वान तो थे ही साहित्य और संगीत के भी बड़े तपस्वी साधक थे. वे कवि-सम्मेलनों की एक शोभा थे.” यह बात महाकवि जानकी वल्लभ शास्त्री, आचार्य मथुरा प्रसाद दीक्षित और चिंतक, कवि पंडित शिवदत्त मिश्र की जयंती के अवसर पर आयोजित समारोह में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही. उन्होंने इस अवसर पर आयोजित जयंती समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता भी की. डा सुलभ ने इन तीनों विभूतियों के कृतित्व को याद करते हुए कहा कि इन तीनों का एक साथ स्मरण करना किसी बड़े तीर्थ की यात्रा के समान है.
सुलभ ने कहा कि मथुरा प्रसाद दीक्षित हिंदी के विद्वान आचार्य, स्वतंत्रता-सेनानी, वरेण्य साहित्यकार और बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के संस्थापकों में से एक थे. इसी तरह पं शिवदत्त मिश्र एक संवेदनशील कवि और दार्शनिक-चिंतन रखने वाले साहित्यकार थे. ‘कैवल्य’ नामक उनके ग्रंथ में उनकी आध्यात्मिक विचार-संपन्नता और चिंतन की गहराई देखी जा सकती है. कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधान मंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने इन सभी शीर्ष रचनाकारों और महाकवि के साहित्यिक-कृतित्व की सविस्तार चर्चा की. उन्होंने जानकी वल्लभ शास्त्री को गीत का शिखर-पुरुष पुरुष कहा. समारोह में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मधु वर्मा, प्रो जंग बहादुर पाण्डेय, प्रो सुशील कुमार झा, राजेश भट्ट आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए. इस अवसर पर बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक, साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे.