भोपाल: डा धनंजय वर्मा एक समर्पित शिक्षक, विद्वान वक्ता, संवेदनशील संपादक और हिंदी साहित्य में आलोचना के शिखर पुरुष थे. वे अपनी बेबाक शैली, गंभीर अध्ययन और अपने गहन चिंतन के लिए जाने जाते हैं. उनके द्वारा साहित्यिक महफिल और गोष्ठियों में एक जीवंत वातावरण रहता था. स्थानीय दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में डा वर्मा की याद में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त किए. 88 वर्षीय डा वर्मा के निधन पर राज्य के मुख्यमंत्री डा मोहन यादव ने भी दु:ख व्यक्त किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि डा धनंजय वर्मा का निधन साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है. बता दें कि डा बीमारी के चलते कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थे.
श्रद्धांजलि सभा में वक्ताओं ने कहा कि कहानीकार कमलेश्वर और गजलकार दुष्यंत कुमार से डा वर्मा की मित्रता और नजदीकियां साहित्यिक गलियारों में सदैव याद की जाएंगी. उनके द्वारा रचित साहित्य सदैव हमारा मार्गदर्शन करेगा. उनके निधन से साहित्य के क्षेत्र में जो शून्य पैदा हुआ है, उसे कभी नहीं भरा जा सकता. साहित्यकार रामाराव वामनकर ने कहा कि डा वर्मा ने हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य किए वे सदैव अविस्मरणीय रहेंगे. श्रद्धांजलि सभा में करुणा राजुरकर, घनश्याम मैथिल अमृत, जगदीश प्रसाद कौशल, वीके श्रीवास्तव, विशाखा, विपिन बाजपेयी, मनोज माइक सहित अनेक साहित्यकारों ने डा धनंजय वर्मा के चित्र पर पुष्प अर्पित कर अंत में दो मिनट का मौन रखा.