नई दिल्ली: स्वतंत्रता के ‘अमृत काल‘ में राष्ट्र की सेवा में अमूल्य योगदान देने वाले सभी स्वतंत्रता सेनानियों को उचित सम्मान दिलाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, महामना मालवीय मिशन ने ‘पंडित मदन मोहन मालवीय की संकलित रचनाओं‘ को प्रकाशित किया है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय की अगुआई में ये द्विभाषी रचनाएं अंग्रेजी और हिंदी में 11 खंडों में हैं. इनमें लगभग 4,000 पृष्ठ हैं, जो देश के हर कोने से एकत्र किए गए पंडित मदन मोहन मालवीय के लेखों और भाषणों का संग्रह है. इन खंडों में उनके अप्रकाशित पत्र, लेख और ज्ञापन सहित भाषण; वर्ष 1907 में उनके द्वारा प्रारम्भ किए गए हिंदी साप्ताहिक ‘अभ्युदय‘ की संपादकीय सामग्री; समय-समय पर उनके द्वारा लिखे गए लेख, पैम्फलेट एवं पुस्तिकाएं; वर्ष 1903 और वर्ष 1910 के बीच आगरा और अवध के संयुक्त प्रांतों की विधान परिषद में दिए गए सभी भाषण; रायल कमीशन के समक्ष दिए गए वक्तव्य; वर्ष 1910 और वर्ष 1920 के बीच इंपीरियल विधान परिषद में विभिन्न विधेयकों को प्रस्तुत करने के दौरान दिए गए भाषण; बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना से पहले और उसके बाद लिखे गए पत्र, लेख एवं भाषण; और वर्ष 1923 से लेकर वर्ष 1925 के बीच उनके द्वारा लिखी गई एक डायरी शामिल हैं.
पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा लिखित और बोले गए विभिन्न दस्तावेजों पर शोध और उनके संकलन का कार्य महामना मालवीय मिशन द्वारा किया गया, जो महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के आदर्शों और मूल्यों के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित एक संस्था है. राम बहादुर राय के नेतृत्व में इस मिशन की समर्पित टीम ने इन सभी रचनाओं की भाषा और पाठ में बदलाव किए बिना ही पंडित मदन मोहन मालवीय के मूल साहित्य पर उत्कृष्ट कार्य किया है. इन पुस्तकों का प्रकाशन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीनस्थ प्रकाशन प्रभाग द्वारा किया गया है. आधुनिक भारत के निर्माताओं में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के यशस्वी संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय का अग्रणी स्थान है. उन्होंने ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसे संस्थानों में पढ़ रहे युवाओं को बीएचयू में आने के लिए प्रोत्साहित किया. महामना इंग्लिश के महान विद्वान होने के बावजूद भारतीय भाषाओं के प्रबल पक्षधर थे. एक समय था जब देश की व्यवस्था में, न्यायालयों में फारसी और अंग्रेजी भाषा ही हावी थी. मालवीय जी ने इसके खिलाफ भी आवाज़ उठाई थी. उनके प्रयासों से नागरी लिपि चलन में आई, भारतीय भाषाओं को सम्मान मिला. पंडित मदन मोहन मालवीय को एक उत्कृष्ट विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सदैव याद किया जाता है, जिन्होंने लोगों के बीच राष्ट्रीय चेतना जगाने के लिए अथक मेहनत की थी.