लखनऊ: पहले पढ़ने की ललक. फिर दुनिया में धाक जमाने की जिद. …और जब नस्लवाद और भेदभाव आंखों में खटका तो आरपार. यही छोटा सा परिचय है कर्नाटक के उडुपी शहर की रश्मि सामंत का. जागरण संवादी के तीसरे दिन के द्वितीय सत्र में प्रशांत कश्यप के सवाल… क्या पढ़ने गई थीं आप? के उत्तर में रश्मि ने हिंदी-अंग्रेजी में अपनी बात कही कि छोटे से शहर से यात्रा शुरू की, जो आपको दिखता है वही आपकी फीलिंग बन जाती है. कांतारा फिल्म आप लोगों में से बहुतों ने देखी होगी. उडुपी को टेम्पल टाउन माना जाता है. यह भी माना जाता है कि यहां के लोग बहुत दान-पुण्य करते रहते हैं. यहां से कई राष्ट्रीयकृत बैंक निकले हैं. मां गृहिणी और पिता छोटे से व्यवसायी हैं. आक्सफोर्ड पढ़ने की वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि मैं छोटी थी तभी हाकर से डिक्शनरी मिली थी. तभी सोचा था कि आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय पढ़ने जरूर जाऊंगी. मैंने पढ़ाई की है इंजीनियरिंग में. कश्यप ने मजाकिया अंदाज में कहा कि अब तो आप दिल्ली का स्माग कम करेंगी? तो प्रेक्षागृह में ठहाके लगे. उडुपी में आपके घर में कोई ऐसा भी था जो पीछे से मदद कर रहा था? के जवाब में रश्मि ने कहा कि नहीं, मैंने किसी की मदद नहीं ली. यूं ही फार्म डाल दिया. पहला दौर खुशहाल बीता… फिर दूसरा दौर आक्सफोर्ड की यात्रा. हम वहां पहुंचे तो सब कुछ अच्छा लगा. मैंने फोटो वगैरह खूब लिए. दुनियाभर के लोग मिले. वहां गणेश जी की मूर्ति देखी उनका सम्मान नहीं दिखा. ऐसे दर्शाया गया था कि जैसे लूट के लाया गया हो, जबकि सेसिल रोड्स की मूर्ति का बखूबी सम्मान दिखायी पड़ा. यहीं से मन और विचार ने करवट बदली. सोचा कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी के नाम पर सबसे बड़ा वजीफा और हमारे देव के प्रति घृणित भाव आखिर क्यों?
आक्सफोर्ड में ही छात्र राजनीति में रश्मि का पदार्पण हुआ, 54 फीसद मतों से भारी भरकम ऐतिहासिक जीत मिली. जहां इससे पूर्व आक्सफोर्ड के इतिहास में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो सिर्फ एक छोटा सा चुनाव जीती थीं. वहां भारत का परचम अध्यक्ष पद पर बुलंद हो गया. रश्मि बोलीं… गलत को गलत कहने का साहस होना चाहिए. मेरे पास यह बखूबी है. इस जीत के बाद रश्मि के साथ सोशल मीडिया पर लामंबदी शुरू हो गई. वह बताती हैं कि मेल व अन्य माध्यम से मुझे बराबर परेशान करने की कोशिश होने लगी. वहां लोगों को एक भारतीय के शीर्ष पर पहुंचने की बात कचोटने लगी. मैंने सोचा कि यह लोग वही हैं जिन्हें अंगूर खट्टे लगे हैं. बात यहां तक होने लगी कि यह छात्रा तो उडुपी की है जो हिंदुत्व का गढ़ है. मेरे माता-पिता की फोटो भी सोशल साइट पर डाली गई उसके नीचे लिखा था जयश्री राम. नस्लवाद, भेदभाव खुलकर खेला जाने लगा. तब मेरे विज्ञान संकाय से मुझे साहस और समर्थन मिला. फिर मेरे सपोर्ट में जो आया उनको भी उतना ही विरोध झेलना पड़ा. इतिहास के प्रोफेसर ने तो हद पार करते हुए लिखा था कि रश्मि सामंत द हिंदू प्रेसिडेंट आफ इंडिया. यह सब सीमित दायरे से बाहर होकर सार्वजनिक टिप्पणी का हिस्सा बन गया था. इंटरनेट मीडिया के इस घमासान से रश्मि बीमार हो गईं. गीता अध्ययन से वह इस झटके से उबरीं. उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने अर्जुन की काउंसलिंग ही तो की थी. मोह माया से निकलकर ड्यूटी निभानी चाहिए. कार्यक्रम के अंत में कानपुर दैनिक जागरण के संपादकीय प्रभारी जितेन्द्र शुक्ल ने रश्मि सामंत को राम मंदिर की छवि प्रदान कर सम्मानित किया.