लखनऊ: हमारी गौरवशाली परंपरा, हमारी समृद्ध वर्ण व्यवस्था, मूर्तियों-प्रतिमाओं के प्रति हमारी गहरी सनातन आस्था; अनगिनत घात-प्रतिघात सहन कर अक्षत-अक्षय रहीं. आत्मगौरव का यह आख्यान सुनने को नई पीढ़ी आतुर, उत्सुक बैठी है, आप कथा तो सुनाएं… ‘प्रतिमाएं, आस्था की शक्ति‘ विषय पर संवादी के प्रथम दिन के प्रथम सत्र में अमीश त्रिपाठी और सहलेखिका भावना रॉय से दूरदर्शन के कार्यक्रम प्रमुख आत्म प्रकाश मिश्र के दौरान यह बातें सामने आईं. गोमतीनगर स्थित भारतेंदु नाट्य अकादमी के सभागार में ‘आइडल्स: अनअर्थिंग द पावर ऑफ मूर्ति पूजा‘ पुस्तक पर अमीश और भावना रॉय का गहन स्नेह कई बार छलका. भावना केवल सहलेखिका ही नहीं अमीश की बड़ी बहन भी हैं. आत्म प्रकाश के प्रश्न कि इस पुस्तक की आवश्यकता क्यों पड़ी? अमीश ने कहा कि प्राचीन समय में विश्व भर में मूर्ति पूजक संस्कृतियां और सभ्यताएं थीं, लेकिन पिछले 2000 वर्ष में इतिहास का एक मोड़ आया था कि ये मर गईं या मार दी गईं. कांस्य युग की संस्कृतियों में से ये मात्र भारत में आज भी जीवित है. मूर्ति पूजक संस्कृतियों में से जापान भी आज अस्तित्व में है. चीन में 100 वर्ष में जो मार्क्सवादी राज्य चला वहां इन संस्कृतियों को मिटा दिया गया है. कार्ल मार्क्स ने तो मूर्ति पूजा के लिए सिर्फ भारतीयों पर व्यंग्य किया था. अन्य आतताइयों ने तो हम पर वार किए. करोड़ों को मार दिया गया, मंदिर तोड़े गए, विश्वविद्यालय जला दिए गए, लेकिन मुहम्मद इकबाल की पंक्तियां याद आ रहीं हैं कि कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जमां हमारा…. जिन लोगों ने हम पर प्रहार किए, हम उन्हें सरताज बना रहे हैं. हम खुद अपनी संस्कृति भूल गए. आज भी मूर्ति पूजा जीवित है, तो यह समृद्ध प्रथा हमारी जड़ों में होने के कारण है.
आत्म प्रकाश ने सिनेमा की बात करते हुए ‘पत्थर की पूजा करके हारी मैं हारी…‘ जैसे गीत के लाखों-करोड़ों लोगों की स्मृतियों में बस जाने की बात करते हुए दीवार फिल्म के एक डायलाग को याद किया कि आज खुश तो बहुत होगे तुम…. अमीश का उत्तर था कि हम अपनी इस संस्कृति को भूल गए हैं. दीदी और मैं गर्व से कहते हैं कि हम मूर्तिपूजक हैं. भावना रॉय ने आईएएस की नौकरी छोड़ने की वजह पूछे जाने पर कहा कि ‘खीर के लिए शक्कर छोड़ दी‘. मूर्ति पूजा किताब के लेखन के पीछे की वजह में उन्होंने बताया कि मेरे घर एक सहेली आईं. आवेश में कहने लगीं कि आप आइडल वर्शिपिंग क्यों कहती हैं. मूर्ति पूजा बोलिए. हम प्राण प्रतिष्ठा करते हैं. हम मूर्ति पूजक हैं, हम आइडल वर्शिपर शाब्दिक अर्थ में मूर्ति की पूजा करने वाले नहीं हैं. अमीश ने पूछा कि कोई बता सकता है कि नमस्ते का क्या अर्थ है? विनीता मिश्रा ने कहा कि आपके भीतर जो देवत्व है, उसको नमन करना ही नमस्ते है. इस पर सभागार तालियों से गूंज उठा. भावना रॉय ने कहा कि हम बच्चों को अपनी परंपरा के बारे में ढंग से अवगत नहीं करा रहे हैं. रामायण, महाभारत, वेद, पुराण, उपनिषद में निहित दुर्लभ ज्ञान-विज्ञान के आत्मगौरव हम नई पीढ़ी में भर नहीं पा रहे हैं. युवा पीढ़ी उत्सुक है कि हम उसे अपने गौरवगान सिखाएं. सत्र में विनीता मिश्रा, कैप्टन कुरील और प्रशांत कश्यप के प्रश्नों के उत्तर का सार निकला कि हमारी कल्पना को जो उभारे वही मूर्ति है.