कोलकाता: नीलांबर के वार्षिकोत्सव ‘लिटरेरिया‘ के दौरान ‘आजाद मुल्क का दरबारी राग‘ विषय पर आयोजित सत्र में चर्चित युवा कवि विहाग वैभव ने ‘गोदान‘, ‘मैला आंचल‘, ‘महाभोज‘ और ‘वारेन हेस्टिंग्स का सांड़‘ की चर्चा करते हुए अपनी बात रखी. उन्होंने कि आज के लोकतंत्र को देखते हुए ऐसा लगता है कि यह लोकतंत्र बिना संघर्ष के ही मिला है. स्वप्न भंग इसकी परिणति है. आलोचक वेद रमण का कहना था कि आजाद मुल्क का दरबारी राग मात्र राजनीति तक सीमित नहीं है बल्कि साहित्य में भी यह संस्कृति व्याप्त है. रमण ने प्रेमचंद के ‘सूरदास‘, रेणु के ‘बामनदास‘ और उदय प्रकाश के ‘मोहनदास‘ के बीच संबंध को रेखांकित करते हुए अपनी बात रखी. आलोचक एवं चिंतक मणीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा कि आज जो ज्ञान की राजनीति चल रही है, उसने समूचे परिदृश्य को उलटपुलट सा कर दिया है. इसने हमारे पारंपरिक ज्ञान को समाप्त कर दिया है. आज जो ज्ञान की परंपरा चल रही है वह आजादी के समय के ज्ञान की परंपरा से भिन्न है.
वरिष्ठ आलोचक सुधीश पचौरी अपने अध्यक्षीय वक्तव्य के माध्यम से व्यंग्य के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि हम सबके भीतर एक परसाई है जो ताकतवर, शोषक वर्ग के विरुद्ध व्यंग्य के माध्यम से प्रतिरोध व्यक्त करता है. व्यंग्य लोकतंत्र का एक हिस्सा है, जिसमें असहमति व्यक्त होती है. सेमिनार इन सत्रों का संचालन विनय मिश्र ने किया. संवाद-सत्र के पश्चात नीलांबर टीम द्वारा अविनाश मिश्र की कविताओं पर आधारित कोलाज ‘बहुत सारा चारा, बहुत कम दूध‘ की प्रभावशाली प्रस्तुति की गयी. इसमें हिस्सा लेने वाले मुख्य कलाकार थे दीपक ठाकुर, निखिल विनय, अमित मिश्रा, ज्योति भारती एवं प्रज्ञा सिंह. आखिरी में ‘गजल की एक शाम‘ का आयोजन किया गया, जिसमें आमंत्रित शायरों अविनाश दास, सुनील कुमार शर्मा, परवेज अख्तर, शैलेश गुप्ता और अयाज खान अयाज ने अपनी नज्में, गजलें पढ़ीं. संचालन शायरा रौनक अफरोज ने किया. अंत में नीलांबर द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी पर निर्मित लघु फिल्म ‘संवदिया‘ की प्रस्तुति की गई. प्रथम दिन का धन्यवाद ज्ञापन पूनम सोनछात्रा ने किया.