कोलकाता: स्थानीय साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था नीलांबर का वार्षिकोत्सव ‘लिटरेरिया‘ का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और नृत्यांगना सोनाली पांडेय द्वारा काव्य नृत्य की प्रस्तुति से हुआ. स्वागत वक्तव्य संस्था के संरक्षक मृत्युंजय कुमार सिंह ने दिया. उन्होंने कहा कि नीलांबर का हर सदस्य अपनी भूमिका से संस्था का प्रतिनिधित्व करता है. हमें सोचना चाहिए कि वैचारिक स्तर पर हम कहां थे और कहां जा रहे हैं. तीन दिवसीय ‘लिटरेरिया‘ कोलकाता महानगर में हिंदी साहित्य के एक बड़े आयोजन के रूप में शुमार होता है. इसके पहले दिन प्रथम वैचारिक सत्र का विषय था ‘श्रद्धा का विकलांग दौर और परसाई‘. इस विषय पर अपनी बात रखते हुए सुपरिचित आलोचक इतु सिंह ने कहा कि यह दौर वैचारिक विकलांगता का दौर है. हालांकि शारीरिक विकलांगता के प्रति जहां सहानुभूति उत्पन्न होती है, इसके ठीक उल्टे वैचारिक विकलांगता अक्षम्य है.
सिंह ने कहा कि राजनीतिक प्रतिबद्धता के बावजूद परसाई पाठकों को वैचारिक स्वतंत्रता देते थे. कवि एवं आलोचक प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि परसाई के व्यंग्य के शीर्षक अपने आप में शोध का विषय हैं. उन्होंने कहा कि विवेक के अभाव में हम विरोध के स्थान पर ताली बजा रहे हैं, व्यंग्य इस फांक को पूरा करता है. आलोचक मोहन श्रोत्रिय ने कहा कि आज के दौर को श्रद्धा का विकलांग दौर कहने के बजाय दिव्यांग श्रद्धा का दौर कहना ज्यादा उचित होगा. उन्होंने कहा कि परसाई में विश्व साहित्य और विश्व राजनीति की गहरी समझ थी. उनके नजदीक एकमात्र मुक्तिबोध ठहरते हैं. इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए कथाकार एवं कवि उदय प्रकाश ने कहा कि वर्तमान में जो सरोकार मात्र स्वास्थ्य तक सीमित हैं, उसे विचार पर भी केंद्रित करना होगा. उन्होंने कहा कि अब वह राजनीति बची नहीं है, जिससे आधुनिकता का जन्म हुआ था.