भुवनेश्वर: केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भुवनेश्वर में दो दिवसीय ‘संथा कवि भीमा भोई और महिमा पंथ की विरासत पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी’ का उद्घाटन करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे संथा बलराम दास के लक्ष्मी पुराण और संथा कबी भीमा भोई के दर्शन और कविताओं ने समाज में सबसे कमजोर लोगों की समस्याओं का समाधान किया. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि दोनों ने ओड़िआ समाज की सांस्कृतिक और साहित्यिक चेतना को फिर से जागृत करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी. केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने उल्लेख किया कि महिमा धर्म और इसका दर्शन सदैव उनके लिए जीवन में प्रेरणा का स्रोत रहेगा. प्रधान ने कहा कि भीमा भोई का दर्शन अब पहले से कहीं और अधिक प्रासंगिक है और मानवता के कल्याण को स्वयं के कल्याण से ऊपर रखने के लिए समाज के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत है.
याद रहे कि ओड़िशा के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में सम्मिलित महिमा पंथ, सादगी, समानता और निराकार ईश्वर के प्रति समर्पण पर ध्यान देने के साथ एक विशिष्ट धार्मिक आंदोलन का प्रतिनिधित्व करता है. प्रधान ने विकसित भारत के निर्माण में युवाओं को एकजुट करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप कार्यक्रम आयोजित करने के लिए आयोजकों को धन्यवाद दिया. उन्होंने मोबाइल फोटोग्राफी जैसी नई प्रतियोगिताएं जोड़ने के लिए भी उन्हें बधाई दी. उन्होंने यह भी बताया कि युवाओं का उत्साह, साहस और रचनात्मकता किस प्रकार समाज को प्रेरित करती है और दिशा प्रदान करती है. इस संगोष्ठी का आयोजन ओड़िशा केंद्रीय विश्वविद्यालय, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, एसओए मानद विश्वविद्यालय भुवनेश्वर और शास्त्रीय ओड़िआ अध्ययन उत्कृष्टता केंद्र, सीआईआईएल ने शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से किया.
याद रहे कि महिमा पंथ के केंद्र में महिमा गोसेन और उनके शिष्य, भीमा भोई जैसे दो दिग्गज हैं, जो 19वीं शताब्दी के अंत में आए थे. उन्होंने महिमा आंदोलन के माध्यम से अपने आध्यात्मिक नेतृत्व और सामाजिक क्रांति के साथ समकालीन ओड़िआ समाज में एक अमिट छाप छोड़ी, जो आज भी क्षेत्र के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में गूंजता है. भीमा भोई को आम तौर पर ‘संथ कवि’ अर्थात ‘संत कवि’ कहा जाता है. उनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं और ओड़िआ भजन तथा चौतिसा ‘भक्ति गीत’ के रूप में साहित्यिक योगदान के लिए पूर्वी भारत में वे हर जगह श्रद्धेय हैं. प्रसिद्ध ‘स्तुति चिंतामणि’ गहन भक्ति, आध्यात्मिक और दार्शनिक अंतर्दृष्टि के साथ ओडिआ भाषा में कई छंदों से युक्त बेहतरीन पुस्तक है. इस संगोष्ठी का उद्देश्य महिमा गोसेन, संथा कवि भीमा भोई और बिस्वनाथ बाबा के जीवन और कार्यों तथा आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर महिमा पंथ के गहरे प्रभाव पर प्रकाश डालना है. संगोष्ठी के उप-विषय थे- ‘महिमा गोसेन और संथा कवि भीमा भोई – संतों के जीवन और कार्य; सर्वधर्म समन्वय-महिमा पंथ की उत्पत्ति और विश्वास; सामाजिक समरसता-महिमा पंथ के माध्यम से सामाजिक सुधार और समानता; जनजागरण- जनजातीय समुदायों पर महिमा प्रभाव; अध्यात्म समाज – आध्यात्मिकता और सामाजिक परिवर्तन की परस्पर क्रिया; कला और संस्कृति -महिमा परंपरा के भीतर कलात्मक और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों की खोज; ओड़िआ साहित्य और भीमा भोई-साहित्यिक विरासत; आधुनिकता- महिमा दर्शन और शिक्षाओं की समकालीन प्रासंगिकता; सांस्कृतिक संरक्षण: महिमा पंथ की सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और प्रचार; और संथा परंपरा और भीमा भोई – संथा परंपरा और भीमा भोई.