जोधपुर: “भारतीय साहित्य में आधुनिक राजस्थानी काव्य अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है, क्योंकि इस काव्य में आम जन के साथ होने वाले अन्याय एवं अत्याचार को प्रमुखता से उजागर किया गया है. रेवतदान चारण इसी परम्परा में एक कालजयी कवि हैं.” यह कहना है राजस्थानी भाषा के प्रोफेसर डा कल्याण सिंह शेखावत का. वे साहित्य अकादेमी एवं जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के राजस्थानी विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित रेवतदान चारण जन्म शताब्दी दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे. शेखावत ने कहा कि चारण ने गरीब मजदूर तथा किसान के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ लड़ाई को अपनी कविता में आवाज दिया. उन्होंने आजादी के दौर में राजस्थानी काव्य को नई दिशा और दशा प्रदान की. उन्होंने कहा कि रेवतदान चारण एक स्वाभिमानी कवि थे, जिन्होंने जीवन भर अन्याय और अत्याचार के खिलाफ काव्य सृजन किया. समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर सोहनदान चारण ने कहा कि कवि रेवतदान चारण खरी एवं खारी बात कहने वाले जनकवि थे जिनकी कविताएं आज भी लोक के कंठ में रची बसी हैं. उन्होंने कहा कि रेवतदान के काव्य पर आलोचनात्मक एवं तुलनात्मक शोध की महती दरकार है. कार्यक्रम के प्रारम्भ में सभी अतिथियों का स्वागत सत्कार किया गया. समारोह संयोजक राजस्थानी विभागाध्यक्ष डा गजेसिंह राजपुरोहित ने सभी का आभार ज्ञापित किया.
इससे पहले तृतीय साहित्यिक सत्र लेखक मधु आचार्य ‘आशावादी‘ अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ. इस सत्र में डा गिरधरदान रतनू ने ‘रेवतदान चारण रै काव्य में लोक चेतना‘ तथा डा रामरतन लटियाल ने ‘रेवतदान चारण रै काव्य में जथारथ-बोध‘ विषयक आलोचनात्मक पत्र-वाचन किया. चतुर्थ साहित्यिक सत्र रचनाकार भंवरसिंह सामौर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ. इस सत्र में कृष्ण कुमार ‘आशु‘ ने ‘रेवतदान चारण रौ आधुनिक राजस्थानी कविता में योगदान‘, डा मदन गोपाल लढ्ढा ‘रेवतदान चारण रै काव्य में जथारथ-बोध‘ तथा डा गौतम अरोड़ा ने ‘रेवतदान चारण रै काव्य री भासा-सैली: अेक दीठ‘ विषय पर आलोचनात्मक शोध आलेख प्रस्तुत किया. संगोष्ठी के दूसरे दिन कवि-आलोचक प्रोफेसर अर्जुनदेव चारण, डा पद्मजा शर्मा, डा मदन सैनी, डा कालूराम परिहार, मोहन सिंह रतनू, लक्ष्मणदान लालस, गोविंद सिंह चारण , विरेन्द्र सिंह लखावत, अब्दुल समद राही, भंवरलाल सुथार, खेमकरण लालस, अफजल जोधपुरी, शीन मीम हनीफ, एमआई माहिर, नफासत अली, संतोष चौधरी, रेणू शर्मा, धनंजया अमरावत, हरीश बी शर्मा, कैलाश कबीर, गौरव सिंह अमरावत, डा लक्ष्मी भाटी, डा भानुमति, तरनिजा मोहन राठौड, नीतू राजपुरोहित, सुमेर सिंह शेखावत, डा मनोज सिंह, दिलीप सिंह राव, डा भींवसिंह, डा अमित गहलोत, डा जितेन्द्र सिंह साठिका, महेन्द्रसिंह छायण, रविन्द्र चौधरी, डा लक्ष्मण सिंह राठौड़, डा इन्द्रदान चारण, नाथू सिंह इंदा, जगदीश मेघवाल, विष्णुशंकर, सौरभ सहित बड़ी संख्या में रचनाकार, शोध-छात्र एवं विधार्थी मौजूद रहे.