चित्रकूट: गोस्वामी तुलसीदास राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में ‘लोक साहित्य और 21वीं सदी का भारतीय समाज‘ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ. संगोष्ठी का शुभारंभ मां सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ. अतिथि के तौर पर प्रो अनंत मिश्र वरिष्ठ कवि समालोचक एवं पूर्व विभागाध्यक्ष हिंदी विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय, प्रो चितरंजन मिश्र समालोचक विचारक एवं पूर्व प्रतिकुलपति महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा, प्रो मुन्ना तिवारी अध्यक्ष हिंदी विभाग बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी तथा महाविद्यालय के प्राचार्य डा विनय चौधरी रहे. संगोष्ठी संयोजक डा नीरज गुप्ता ने संचालन एवं अतिथियों का स्वागत आयोजन सचिव डा गौरव पांडेय ने किया. वक्ताओं ने कहा कि भारतीय समाज की आत्मा लोक में ही बसती है. यह लोक उन लोगों से बना है जो लोग मानव जीवन की शुरुआत से लेकर आधुनिक सभ्यता के गलियारे तक संघर्ष करते रहे हैं. जिन्होंने कठिन परिश्रम करते हुए इस धरती को अन्नदा बनाया है. वह प्रकृति की विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए सभ्यता को 21वीं सदी तक ले आए हैं.
इन वक्ताओं का कहना था कि हमारे बौद्धिक पूर्वजों द्वारा सदियों के शोध से सृजित लोक साहित्य का यह विधान अनंत है, जहां श्रमजीवी मनुष्य के सुख-दुख से लेकर प्रकृति में रहने वाले प्रत्येक जीव के संघर्ष, प्रेम, आशा-निराशा, स्वप्न, स्मृति एवं आकांक्षाओं की अनुगूंजे सुनाई देती हैं. भारतीय समाज में संस्कृति, परंपरा और जीवन मूल्यों का विशेष महत्त्व हमेशा रहा है. गांव से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त नगरों में निवास करने वाले लोग भी अपनी परंपरा और जीवन मूल्य पर आस्था रखते हैं. लेकिन पिछले कुछ दशकों में लोक जीवन में बहुत परिवर्तन हुए हैं. औद्योगिकीकरण, भूमंडलीकरण और उदारीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय समाज में बहुत परिवर्तन किए हैं. जिनका प्रभाव लोक साहित्य की परंपरा पर पड़ा है. ‘लोक साहित्य और 21वीं सदी का भारतीय समाज‘ विषय पर आधारित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में अतिथियों एवं शोधार्थियों ने कविताओं का पाठ किया. इस दौरान डा अनंत मिश्र, डा विवेक निराला, डा निशांत, सुशीला पुरी, आनंद गुप्ता, कुमार मंगलम, नताशा, दिव्या शुक्ला, अमृता त्रिपाठी आदि मौजूद रहे.