इंदौर: क्षितिज संस्था ने अपने स्थापना दिवस पर अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डा विकास दवे सहित कई जानेमाने साहित्यकार उपस्थित थे. क्षितिज संस्था ने अपनी स्थापना के 40 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं. इस संस्था ने 2018 में अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन आयोजित किया था, जो अब भी अनवरत जारी है. इस एक दिवसीय सम्मेलन के प्रमुख अतिथि साहित्यकार डा जयंत गुप्ता थे, विशिष्ट अतिथि के रूप में लघुकथाकार बलराम अग्रवाल तथा सम्मानित अतिथि के रूप में सूर्यकांत नागर ने शिरकत की. संस्था के अध्यक्ष सतीश राठी ने सदस्यों का स्वागत किया और देश के विभिन्न हिस्सों से आए लघुकथा लेखकों को सम्मानित किया. बलराम अग्रवाल ने कहा कि 1983 तक लघुकथा और लघु कहानी के मध्य विवाद था. लघुकथा को पृथक पहचान दिलाने के उद्देश्य से संस्था क्षितिज का गठन किया गया. जिसे चालीस साल पूर्ण हो गए हैं. यह हम सबके लिए गौरव की बात है. पिछले दो-तीन दशकों में लघुकथा के लेखन को बहुत गति मिली है. पत्रिकाओं के विशेषांक, विभिन्न मंचों पर प्रतियोगिताएं इसे आगे बढ़ा रहे हैं.
जयंत गुप्ता ने कहा कि मैं जन्म और कर्म से लक्ष्मी पुत्र हूं. पर मैं सरस्वती का अनन्य साधक हूं. मैंने पचास की वय तक जो पाया उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए तीन पुस्तकें तैयार की हैं. अंग्रेजी में कहावत है, जीवन चालीसवें साल में आरंभ होता है. इसके अनुसार क्षितिज का वास्तव में आरंभ अब हुआ है. क्षितिज की यात्रा में हम सभी पूर्ण सहयोग देंगे. डा विकास दवे ने कहा कि क्षितिज का वार्षिक सम्मेलन हम सभी को उर्जा से भर देता है. यहां लघुकथा का लघु भारत देखने को मिलता है. किसी भी विधा को मान्यता रचनाकार देते हैं, अकादमियां नहीं. हम तो रचनाओं और रचनाकारों का सम्मान करते हैं. लघुकथा का अपना स्वरूप है, अपना सौष्ठव है. मैंने अपने जीवन में कविता, कहानी को तो नहीं लघुकथा को संघर्ष करते देखा है; और वर्षों के संघर्ष का परिणाम है कि यदि आज सभी विधाओं में प्रकाशन की प्रतियोगिता हो तो निश्चित रूप से लघुकथा ही अव्वल आएगी. उन्होंने कहा कि लघुकथा में निरंतर होने वाले शोध मील का पत्थर साबित हो रहे हैं. साझा संकलन लघुकथा को नई ऊंचाइयां दे रहे हैं. लघुकथा बाल साहित्य का भी हिस्सा है. हाल ही में कई लघुकथा संग्रह के अनुवाद भी प्रकाशित हुए. नई शिक्षा नीति में लोक भाषाओं को महत्त्व दिया गया है. लोक भाषाओं में भी लघुकथा के अनुवाद आने चाहिए. रंगकर्मियों ने लघुकथा को मंच प्रदान कर चिरंजीवी बना दिया है.